Wednesday, September 6, 2023

जीवन साँझ


गीत

दबे पाँव जब संझा आयी

प्रेम सरित अब बहने दो ।

उथल पुथल थी जीवन नैया

नैन डगर तुम रहने दो ।।


कांच नुकीले कंकड़ कितने

रक्त बहाए तन मन से,

पटी पड़ी है नयन कोटरें 

उजड़े उन रिक्त सपन से,

बोल मौन हो नयन बोलते

परिभाषा नित कहने दो ।

नैन ...


धागे उलझे हृदय पटल पर

एक छुअन सुलझाती है,

नर्तन करती चाँद चाँदनी

जब भी तू मुस्काती है,

मुक्त क्षणों की धवल पंक्तियां

जीवन को ये गहने दो ।

नैन ..


नीड़ भरा था तब मेले से 

आज अकेले दो प्राणी

पल-पल को अब मेला कर लें

रखें ताक पर कटु वाणी

अटल सत्य के अंतिम क्षण में

संग हार हम पहने दो  ।

नैन..


अनिता सुधीर आख्या


चित्र - गूगल से साभार।



1 comment:

  1. बहुत सुंदर, बहुत सुकोमल, हृदय-विजयी भावों में रची-बसी कविता है यह।

    ReplyDelete

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...