महाकुंभ
अद्भुत नगर प्रयाग को,नव्य बनाता कुंभ।
सत्य सनातन प्रेम को,दिव्य बनाता कुंभ।।
भाव त्याग विश्वास ले,भक्ति सिखाता कुंभ।
संत समागम योग से,शक्ति सिखाता कुंभ।।
ले आध्यात्मिक भाव को,कल्पवास का कुंभ।
समरसता के मूल्य में,उर हुलास का कुंभ।।
पुण्य त्रिवेणी देखती,उर का निर्मल कुंभ।
लिए विरासत देश की,बहता कलकल कुंभ।।
नगर बसा तट धूलि पर,सृष्टि दिखाता कुंभ।
मानव के कल्याण को,दृष्टि दिखाता कुंभ।।
रोजगार व्यवसाय को,सफल बनाता कुंभ।
मूल्य प्रबंधन का लिए,पाठ पढ़ाता कुंभ।।
साधक समिधा यज्ञ में,चंदन करता कुंभ।
नित्य उच्चता पर पहुँच,मंथन करता कुंभ।।
कथा अखाड़ों की कहे,शांति दिलाता कुंभ।
जीवन बंधन डोर की,भ्रांति मिटाता कुंभ।।
अनिता सुधीर आख्या
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