मुक्तक
ग़मों को उठा कर चला कारवां है।
बनी जिंदगी फिर धुआं ही धुआं है।।
जहां में मुसाफ़िर रहे चार दिन के
दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है।।
अनिता सुधीर आख्या
मुक्तक
ग़मों को उठा कर चला कारवां है।
बनी जिंदगी फिर धुआं ही धुआं है।।
जहां में मुसाफ़िर रहे चार दिन के
दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है।।
अनिता सुधीर आख्या
कब मार्ग मिला दिशि हीन चली,उर भाव पड़े जब शुष्क विविक्त।
मति मूढ़ लिए भटकी जग में,भ्रम जीवन को करता फिर तिक्त।।
मन अस्थिर के रथवान बने,गुरु खींच रहे जब से उर रिक्त।
चित धीर रखा सम भाव जगा,नित ईष्ट करें यह जीवन सिक्त।।
अनिता सुधीर आख्या
कोदंड धनुष विधि लेखा का नेक कार्य ले, रघुवर वन को आए थे मर्यादा ने मर्यादा रख, अद्भुत अस्त्र उठाए थे धन्य-धन्य वह बाँस युगों तक, जिससे कोदंड...