गीतिका
2212 2212 2212 2212
समान्त एगी पदांत नहीं
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अब लेखनी भी मौन है,वह सत्य ढूँढेगी नहीं।
इतिहास फिर झूठा लिखा,ये बात भूलेगी नहीं।।
जो गलतियाँ की काल ने,भुगते सजा वो आज हम,
अब टीस उठती भूल की,क्या वो सताएगी नहीं।।
जब स्तंभ चौथा डगमगा कर बिक रहा बाजार में
फिर मूल्य चीखे जोर से, वह तथ्य देखेगी नहीं ।।
क्यों ताक पर कर्तव्य रख ,सब पग बढ़ाते जा रहे,
फिर पीढियां भी आज की ,आदर्श मानेंगी नहीं।।
ताकत कलम को फिर मिले,जो सत्य यह नित लिख सके
व्यापार बनती लेखनी, फिर क्या डराएगी नहीं।।
पैसा कमाना लेखनी से लक्ष्य बनता जा रहा,
अब मौन होकर साधना, अपमान झेलेगी नहीं।।
अनिता सुधीर
सुन्दर व सार्थक लेखन।
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteबेहतरीन नज्म।
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