दोहा
वृक्ष
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वृक्ष काटते जा रहे, पारा हुआ पचास।
वृक्षों का रोपण करें,इस आषाढ़ी मास ।।
जड़ें मृदा को बाँधतीं, लगे बाढ़ पर रोक।
वृक्ष क्षरण जब रोकते, तभी मिटे ये शोक।।
धरती बंजर हो रही ,बचा न खग का ठौर।
बढ़ा प्रदूषण रोग दे ,करिये इसपर गौर ।।
भोजन का निर्माण कर ,वृक्ष करे उपकार।
प्राणवायु देते सदा ,जो जीवन आधार ।।
देव रूप में पूज्य ये ,धरती का श्रृंगार।
है गुण का भंडार ये ,औषध की भरमार ।।
संतति जैसे वृक्ष ये ,करिये प्यार दुलार ।
उत्तम पानी खाद से ,लें रक्षा का भार ।।
अनिता सुधीर
जी हार्दिक आभार
ReplyDeleteआ0 हार्दिक आभार
ReplyDeleteप्रकृति बार-बार चेताती है पर हम सुनने को तैयार ही नहीं हैं !
ReplyDeleteसत्य कहा आ0
Deleteदोहों के माध्यम से बहुत सच्ची बात कही है ।
ReplyDeleteवृक्ष की महत्ता समझाते सार्थक दोहे । सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteउत्तम कथ्य... सुन्दर रचना!
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
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