गीत
मति की क्षति के अर्थ अनेकों
विषय बड़ा है गूढ़
एक तराजू कैसे तौले
मति गति बुध्दि विवेक।
अलग रही क्षति की परिभाषा
मानव रूप अनेक।।
तीस मार खाँ सभी बने अब
मैं अज्ञानी मूढ़
मति की ...
इसकी क्षति में घर से निकले
दोनों राजा रंक
देश रसातल में जाता फिर
खूब लपेटे पंक
हवा करे काला बाजारी
तरसें बच्चे बूढ़
मति की ...
इसकी गति जब हो बलशाली
टीका हो तैयार
फिर क्षति में हो नीयत लोभी
करे दवा व्यापार
अहम कराता दंगल बाजी
जो सत्ता आरूढ़
मति की ...
अनिता सुधीर
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteजो होना है मति अनुसार होना है ... सच कहा है, इसकी गति सकारात्मक रहे तो अच्छा है ...
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