तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Sunday, October 31, 2021

सरदार वल्लभ भाई पटेल



जब बँटा भारत था

त्रासदी आयी अति घोर।

लौह वल्लभ ने फिर 

एकता की बाँधी डोर।।

***

दूरदर्शिता सरिस शिवाजी, कूटनीति थी सम कौटिल्य। 

सजग सचेत सदा जीवन में ,नीति निपुणता थी प्राबल्य।।


बने बारडोली के नायक, महिलाएँ कहती सरदार। 

लौह पुरुष थे उच्च श्रृंग पर, लिए अखंडित देश प्रभार।। 


क्रांति करी थी रक्तहीन जो, लोकतंत्र का दे आधार। 

ऐसे नायक बिरले होते, जो जीवन को दें आकार।। 


मूर्ति खड़ी जो एका की है, हर उर में अब धड़कें आप।  

उन्हीं सिद्धांत पर आज चलें, कटे देश के सब संताप। 


नाप सकेगा कौन ऊँचाई,ऐसा बल्लभ भाई नाम। 

भारत रत्न महान रहा जो , नतमस्तक हो उन्हें प्रणाम।।


अनिता सुधीर आख्या

Saturday, October 30, 2021

काष्ठ


 

भाव उकेरे काष्ठ में, कलाकार का ज्ञान।
हस्तशिल्प की यह विधा,गाती संस्कृति गान।।

वृक्षों पर आरी चली,बढ़ा काष्ठ उपयोग।
कैसे शीतल छाँव हो, कैसे रहें निरोग।।

ठंडा चूल्हा देख के, आंते जातीं  सूख।
अग्नि काष्ठ की व्यग्र है,शांत करें कब भूख।।

छल कपटी व्यवहार से,क्यों रखते आधार।
नहीं काष्ठ की हाँडियाँ, चढ़तीं बारंबार।।

सजे चिता जब काष्ठ की, पावन हों सब कर्म।
गीता का उपदेश यह, समझें जीवन मर्म।।

Friday, October 29, 2021

दक्षिणा

दक्षिणा

***
'मॉम पंडित जी का पेमेंट कर दो '
सुन कर इस पीढ़ी के श्रीमुख से
संस्कृति कोने में खड़ी कसमसाई थी 
सभ्यता दम तोड़ती नजर आई थी ।

मैं घटना की मूक साक्षी बनी
पेमेंट और दक्षिणा में उलझी रही,
आते जाते गडमड करते विचारों को
आज के परिपेक्ष्य में सुलझाती रही।

दक्षिणा का सार्थक अर्थ बताने 
 उम्मीद लिए बेटे के पास आई
पूजन सम्पन्न कराने पर दी जाने 
वाली श्रद्धापूर्वक  राशि बताई 

एकलव्य और आरुणि की कथा सुना 
गुरू दक्षिणा का महत्व समझाई 
ब्राह्मण और गुरु चरणों में नमन कर 
उसे अपनी संस्कृति की दुहाई दे आईं

सुनते ही उसके चेहरे पर विद्रूप हँसी नजर आयी 
ऐसे गुरु अब कहाँ मिलते मेरी भोली भाली माई ,
अकाट्य तर्कों से वो अपने को सही कहता रहा
मैं स्तब्ध , उसे कर्तव्य निभाने को कहती आई ।

न ही वैसे गुरु रहे ,न ही वैसे शिष्य
दक्षिणा देने और लेने की सुपात्रता प्रश्नचिह्न बनी
विक्षिप्त सी मैं दो  कालखंड में भटकती रही,
दक्षिणा के सार्थक अर्थ को सिद्ध करती रही ।

प्रथम गुरू माँ  होने का मैं कर्तव्य  निभा न पाई
अपनी संस्कृति  संस्कार से अगली पीढ़ी को
परिचित करा न पाई
दोष मेरा भी था ,दोष उनका भी है 
बदलते जमाने के साथ सभी ने तीव्र रफ्तार पाई

असफल होने के बावजूद बेटे से अपनी दक्षिणा मांग आयी 
तुम्हारे धन दौलत सोने चांदी मकान से सरोकार नहीं मुझे 
बस तू नेक इंसान बन कर जी ले अपनी जिंदगी 
इंसानियत रग रग में हो,
उससे अपना पेमेंट माँग आयी।


अनिता सुधीर

Wednesday, October 27, 2021

नारी

बोले मन की शून्यता


बोले मन की शून्यता

क्यों डोले निर्वात


कठपुतली सी नाचती

थामे दूजा डोर 

सूत्रधार बदला किये 

पकड़ काठ की छोर

मर्यादा घूँघट लिए

सहे कुटिल आघात।।


चली ध्रुवों के मध्य ही 

भूली अपनी चाह 

पायल की थी बेड़ियां

चाही सीधी राह

ढूँढ़ रही अस्तित्व को 

बहता भाव प्रपात।।


अम्बर के आँचल तले

नहीं मिली है छाँव

कुचली दुबकी है खड़ी

नित्य माँगती ठाँव

आज थमा दो डोर को

पीत पड़े अब गात।।


अनिता सुधीर आख्या


Monday, October 25, 2021

ग़ज़ल



आपकी याद को जब ज़ुदा कर दिया।

रूह को जिस्म ने ज्यों फ़ना कर दिया।।


जिंदगी फिर अधूरी कहानी बनी

बेसबब ही दुखों को बड़ा कर दिया।।


तल्खियां जो पसरने लगी दरमियां

चाहतों ने वही फिर ख़ता कर दिया।।


खिड़कियां बंद रखने लगे अब सभी

फिर गमों ने यहाँ घोंसला कर दिया।।


आज़ भी धड़कनों को ख़बर ही नहीं

कब इन्हें ख्वाहिशों ने ख़फ़ा कर दिया।।


अनिता सुधीर आख्या

Sunday, October 24, 2021

करवा चौथ

*मेरे गगन तुम*

मैं धरा मेरे गगन तुम
अब क्षितिज हो उर निलय में

दृश्य आलिंगन मनोरम
लालिमा भी लाज करती
पूर्णता भी हो अधूरी
फिर मिलन आतुर सँवरती
प्रीत की रचती हथेली
गूँज शहनाई हृदय में।।

धार इठलाती चली जब
गागरें तुमने भरीं है
वेग नदिया का सँभाले
धीर सागर ने धरी है
नीर को संगम तरसता
प्यास रहती बूँद पय में।।

नभ धरा को नित मनाता
फिर क्षितिज की जीत होती
रंग भरती चाँदनी तब
बादलों से प्रीत होती
भास क्यों आभास का हो
काल मृदु हो पर्युदय में।।

अनिता सुधीर

Friday, October 22, 2021

मंथरा


 मंथरा घर-घर विराजी

झूठ थिर-थिर नच गया


वृक्ष की मजबूत टहनी

भाग्य पर इठला रही

नित कुटिलता जड़ हिलाती

वेदना है अनकही

पात फँसते चाल में जो

बंधनों का सच गया।।


कान कौवा ले उड़ा जो

दौड़ कर क्यों काग पकड़े

भरभरा विश्वास गिरता

प्रेम को जब लोभ जकड़े

सोच कुबड़ी जीतती जो

पल अकेला बच गया ।।


चाल चलकर काल निष्ठुर

ओढ़ चादर सो रहा

पीप की दुर्गंध सह कर

घाव रिसता रो रहा

मेहंदी भीगी पलक से

और अम्बर रच गया।।

Thursday, October 21, 2021

गीतिका


 छाए जब घनघोर अँधेरा,मन में आस जगाता कौन।

बीच भंवर में नाव फँसी है,इससे पार लगाता कौन।।


खड़ा अकेला बचपन सहमा,एकल होते अब परिवार

दादी नानी के किस्से का,नैतिक पाठ पढ़ाता कौन।। 


सामाजिक ताने-बाने का,भूल गए हैं लोग महत्व 

परंपरा जब बोझ लगेगी,होगा युग निर्माता कौन।। 


कथनी-करनी का भेद बड़ा,व्यथित हृदय के हैं उद्गार ।

एक मुखौटा ओढ़ खड़े हैं, इसको आज हटाता कौन।।


शक्ति रूप में देवी पूजन,फिर बेटी पर अत्याचार

मर्यादा आघात सहे जब, इसका मान बचाता कौन।।


एक दिवस अठखेली कर, हिंदी घूमी चारों ओर। 

शेष समय चुपचाप पड़ी है,नित्य महत्व बढ़ाता कौन।।


ऋषि मुनियों की भारत भू पर, वैदिक संस्कृति का इतिहास।

सत्य सनातन धर्म हमारा, इसको आज सिखाता कौन।।



अनिता सुधीर आख्या


Wednesday, October 20, 2021

पनिहारिन


 

पनिहारन

लिए भार मटकी का चलती 

कोस अढ़ाई पनिहारन


धरा तरसती अब बूँदों को

हुआ वक्ष उसका खाली 

जीव जगत तब व्याकुल रोया 

कहाँ गया उसका माली

तपी दुपहरी कूप खोदते 

आज कागजों में चारन

लिए भार मटकी का चलती 

कोस अढ़ाई पनिहारन


जूठे वासन आँगन देखें 

सास देखती अब चूल्हा

रिक्त पतीली बाट जोहती 

कौन पकाएगा सेल्हा 

तपिश सूर्य  से दग्ध हुई वो 

ज्येष्ठ धूप में बंजारन

लिए भार मटकी का चलती 

कोस अढ़ाई पनिहारन


नुपुर चरण को जब तब छेड़े

पाँव बचाते पत्थर तब

भरी गगरिया छलक रही जो 

बहा परिश्रम झर झर तब

नीर उमड़ता जो नयनों  से 

कहे कहानी कुल तारन

लिए भार मटकी का चलती 

कोस अढ़ाई पनिहारन


अनिता सुधीर आख्या


Tuesday, October 19, 2021

शरद पूर्णिमा

 शरद पूर्णिमा की शुभकामनाएं



मंगल


मंगलकारी रात में, हो अमरित बरसात।

शरदपूर्णिमा चाँद से, बहते हृदय प्रपात।।

बहते हृदय प्रपात, शुभ्रता जीवन भरती।

निकट हुए राकेश, धरा आलिंगन करती।।

रखा पात्र में खीर, बना औषधि उपचारी।

सभी कला में पूर्ण,  कलानिधि मंगलकारी।।


अनिता सुधीर आख्या

पिता

मेरे संग्रह देहरी गाने लगी से...

*पिता*


भाग्य की हँसती लकीरें

जब पिता उनको सजाता


पाँव नन्हें याद में अब

स्कन्ध का ढूँढ़े सहारा

उँगलियाँ फिर काँध चढ़ कर

चाहतीं नभ का किनारा

प्राण फूकें पाँव में वो

सीढ़ियाँ नभ तक बनाता।।


जोड़ता संतान का सुख

भूल कर अपनी व्यथा को

जब गणित में वो उलझता

तब कहें जूते कथा को

फिर असीमित बाँटने को

सब खजाना वो लुटाता।।


छत्रछाया तात की हो

धूप से जीवन बचाते

दुख बरसते जब कभी भी

बाँध छप्पर छत बनाते

और अम्बर हँस पड़ा फिर 

प्यास धरती की बुझाता।।


अनिता सुधीर

Monday, October 18, 2021

लिव इन रिलेशनशिप

 देहरी गाने लगी   (मेरे एकल संग्रह से)


लिव इन रिलेशनशिप


डगमगाती सभ्यता का

अब बनेगा कौन प्रहरी


सात फेरे बोझ लगते

नीतियों के वस्त्र उतरें

जो नयी पीढ़ी करे अब

रीतियाँ सम्बन्ध कुतरें

इस क्षणिक अनुबंध को अब

देखती नित ही कचहरी।।


जब सृजन आधार झूठा 

तब नशे ने दोष ढूँढ़ा

सत्य बदले केंचुली जो

चित्त ने तब रोष ढूँढ़ा

फल घिनौने कृत्य का है

हो रही संतान बहरी।।


पत्थरों ने दूब कुचली

सभ्यता अब रो रही है

माँगती उत्तर सभी से

चेतना क्या सो रही है।।

आँधियों के प्रश्न पर फिर 

ये धरा क्यों मौन ठहरी।।

Sunday, October 17, 2021

गेरुए सी छाप तेरी

गेरुए सी छाप तेरी*

मखमली सी याद में है
गेरुए सी छाप तेरी

साथ चंदन सा महकता
प्रेम अंगूरी हुआ है
धड़कनों की रागिनी में
रूप सिंदूरी हुआ है
सोचता मन गाँव प्यारा
ये डगर रंगीन मेरी ।।

देह के अनुबंध झूठे
रोम में संगीत बहता
बाँसुरी की नाद बनकर
दिव्यता को पूर्ण करता
जो मिटा अस्तित्व तन का
अनवरत अब काल फेरी।।

जब अलौकिक सी कथा को
मौन की भाषा सुनाती
उर पटल नित झूमता सा
प्रीत नूतन गीत गाती
स्वप्न को बुनते रहे हम
कष्ट की फिर दूर ढेरी।।

Saturday, October 16, 2021

ग़ज़ल

गमों को उठा कर चला कारवां है।
बनी जिंदगी फिर धुआं ही धुआं है।।

जहां में मुसाफ़िर रहे चार दिन के
दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है।।

शिकायत करें दर्द क्या हाकिमों से
अदालत लगा कौन सुनता यहां है।

तमाशा दिखाकर सियासत करें जो
मसीहा बने कब दिए आसमां हैं।।

तरक्की क़लम ने लिखी मुल्क की पर... 
थमे मुफ़लिसों पर सितम कब कहाँ है l


 अनिता सुधीर 




Thursday, October 14, 2021

रावण

रावण ..

अशांत मन ,असहनीय वेदना लिये 
यायावर सा भटकता रहा ,
संदेशों में कहे गूढ़ अर्थ को 
समझने की कोशिशें करता रहा ।
प्रतिवर्ष  दम्भी रावण का दहन, 
रावण का समाज में प्रतिनिधित्व
राम कौन ,जो मुझको मारे !ये प्रश्न पूछ
दस शीश रख अट्ठहास करना ,
समाज रावण और भेड़ियों से भरा
ये संदेश विचलित करते रहे ।
एक ज्वलंत प्रश्न कौंधा 
क्या लिखने वालों ने अनुसरण किया!
या संदेश अग्रसारित कर 
कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली ।
.....दो पुतलों को जलते देखा  जब
भीड़ के चेहरे का उत्साह,
वीडियो बनाते इन पलों को कैद करते लोग 
मेला घूमते लोगों को देख 
मन शांत हो नाच उठा ।
ये भीड़ प्रतिदिन
गरीबी ,बेरोजगारी ,अशिक्षा 
अत्याचार और न जाने कितने 
ही रावण से युद्व करती है 
जीवन की भागदौड़ में
तिल तिल कर मरती है ।
त्यौहार संस्कृति है हमारी 
त्यौहार से मिलती खुशियां सारी
प्रत्येक वर्ष रावण का दहन 
देख अपने दुख ,कष्ट भूल जाते हैं 
रावण कुम्भकरण प्रतिवर्ष जल कर 
अपनी संस्कृति से जोड़े रहते हैं
और राम बनने के प्रयास जारी ....

https://youtu.be/mcfFqNAdH80

माता सिद्धिदात्री

माता सिद्धिदात्री के चरणों में पुष्प


नंदा पर्वत तीर्थ में,सिद्धि शक्ति का वास है।
नवमी तिथि की मान्यता,कन्या पूजन खास है।।

महादेव को सिद्धियाँ, मातु कृपा से प्राप्त हैं।
अर्ध देह रख देवि का,नारीश्वर विख्यात है।।

मातु सिद्धिदात्री लिये ,दुर्गे का अवतार हैं।
आठ सिद्धियाँ पाइये,भव सागर फिर पार है।।

ज्ञान बोध की देवियां,परा शक्ति का ध्यान कर।
मिले सिद्धि सम्पूर्णता,सप्त शती का गान कर।।

हवन कुंड की अग्नि में,मिटते सभी विकार हों।
पूजन  सार्थक फिर तभी,अंतस का श्रृंगार हो।।


अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, October 13, 2021

माँ महागौरी

माता महागौरी के चरणों में पुष्प



अष्टम तिथि की दिव्यता,पूज्य शिवा में ध्यान हो।
मातु महागौरी सदा,भक्तों का कल्याण हो।।

जन्म हिमावन के यहाँ, मातु पार्वती ने लिया।
शंकर हों पति रूप में,बाल काल से तप किया।।

श्वेत वर्ण है मातु का,उपमा श्वेतांबरधरा ।
चतुर्भजी दुखहारिणी,माँ का अब है आसरा ।।

पूजन गौरी का करे,शांति हृदय में व्याप्त हो।
करें पाप का नाश फिर,शक्ति अलौकिक प्राप्त हो।।

राहू की हैं स्वामिनी ,दूर करें इस दोष को।
मातु वृषारूढ़ा भरें,सभी भक्त के कोष को।।

Tuesday, October 12, 2021

लोहिया



 राम मनोहर लोहिया


देश के चिंतन में

लोहिया जीवित हैं आज।

पक्षधर शुचिता के 

कर्म के मंथन में आज।।


कुछ लोग मरा कब करते हैं, सोच अमर करती है नाम। 

राम मनोहर समाजवाद को, जन-जन करता नित्य प्रणाम। 


राष्ट्रवाद के प्रखर प्रणेता, नित्य सुधारें देश समाज। 

कर्म अनुसरण कर कितनों ने, अब भी पहना सिर पर ताज।।


आजादी के आंदोलन में,योगदान भूला है कौन। 

जनमानस में भेद मिटाने, कर्म करें वह रहकर मौन।। 


मतभेद जवाहर से होता, सप्त क्रांति की उनकी नीति।

ऐसा जग बन जाए फिर जिसमें पलती पल-पल प्रीति।।


राजनीति की शुचिता में वो, अपनों का भी करें विरोध। 

अनगिन स्मारक आज खड़े हो, नित्य कराते सबको बोध।। 


माँ कालरात्रि

 माता कालरात्रि के चरणों में पुष्प

***

माँ कालरात्रि की अर्चना


कालरात्रि की अर्चना,सप्तम तिथि को कीजिए।

काल विनाशक कालिका,शुभंकरी को पूजिए।।


रक्त बीज संहार जब,जन्म हजारों रक्त का।

दानव का संहार कर,कष्ट हरा फिर भक्त का।।


तीन नेत्र की स्वामिनी,रूप धरे विकराल हैं।

तांडव मुद्रा देख के,दूर भागता काल है ।।


चतुर्भुजी के हाथ में,कांटा और कटार है।

गर्दभ वाहन साथ ले,करें असुर संहार है।।


रोग दोष से मुक्त कर,करें शत्रु का नाश है।

ग्रह बाधा को दूर कर,जग में भरा प्रकाश है।।


द्वार सिद्धियों के खुलें,साधक मन सहस्रार में।

शीर्ष चक्र की चेतना,है दैहिक आधार में।।


अनिता सुधीर

कात्यायनी माता

कात्यायनी माता
***

कात्यायन ऋषि की सुता,अम्बे का अवतार हैं।
छठे दिवस कात्यायनी, वंदन बारम्बार है।।

दानव अत्याचार से,मिला धरा को त्राण था।
महिषासुर संहार से,किया जगत कल्याण था।।

पूजें सारी गोपियाँ, ब्रज देवी सम्मान में।
मुरलीधर की आस थी,मग्न कृष्ण के ध्यान में।।

चतुर्भुजी माता लिए,कमल और तलवार हैं।
वर मुद्रा में शाम्भवी, जग की पालनहार हैं।।

जाग्रत आज्ञा चक्र जो,ओज,शक्ति संचार है।
फलीभूत हैं सिद्धियाँ, महिमा अपरम्पार है।।

Monday, October 11, 2021

स्कन्द माता

 स्कन्द माता के चरणों में पुष्प


पंचम तिथि माँ स्कंद का,पूजन नियम विधान है।

भक्तों का उद्धार कर , करतीं कष्ट निदान हैं।।


तारकसुर ब्रह्मा जपे, माँग लिए वरदान में।

अजर अमर जीवित रहूँ,मृत्यु न रहे विधान में।।


संभव ये होता नहीं,जन्म मरण तय जानिए।

शिव सुत हाथों मोक्ष हो,मिले मूढ़ को दान ये।।


मूर्ति वात्सल्य की सजे,कार्तिकेय प्रभु गोद में।

संतति के कल्याण में,जीवन फिर आमोद में।।


सिंह सवारी मातु की,चतुर्भुजी की भव्यता।

शुभ्र वर्ण पद्मासना,परम शांति की दिव्यता।।


जीवन के संग्राम में,सेनापति खुद आप हैं।

मातु सिखाती सीख ये, बुरे कर्म से पाप हैं।।


ध्यान वृत्ति एकाग्र कर,शुद्ध चेतना रूप से।

पाएं पुष्कल पुण्य को,पार  लगे भवकूप से।।


Sunday, October 10, 2021

माँ कुष्मांडा

माँ कुष्मांडा के चरणों में श्रद्धा के पुष्प


माँ कुष्मांडा पूजते, चौथे दिन नवरात्रि के।
वंदन बारम्बार है, चरणों में बल दात्रि के।।

अंधकार चहुँ ओर था, रूप लिया कुष्माण्ड का ।
ऊष्मा के फिर अंश से, सृजन किया ब्रह्मांड का।।

अष्ट भुजी देवी लिए, माला निधि की हाथ में।
अमृत कलश की सिद्धियाँ, सदा सहायक क्वाथ में।।

शक्ति मिले संकल्प की, चक्र अनाहत ध्यान से।
रहे प्रकाशित दस दिशा, यश समृद्धि सम्मान से।।

ओज तेजमय पुंज का, सूर्य लोक में धाम है ।
सकल जगत की स्वामिनी, शत शत तुम्हें प्रणाम है।।

अनिता सुधीर आख्या




Saturday, October 9, 2021

माँ चंद्रघंटा

माँ चंद्र घण्टा के चरणों में पुष्प


नवरातों त्योहार में, दिवस तीसरा ख़ास।

चंद्र घंट को पूज के, लगी मोक्ष की आस ।।


सौम्य रूप में शाम्भवी, माँ दुर्गा अवतार ।

घण्टा शोभित शीश पर ,अर्ध चंद्र आकार ।।


सिंह सवारी मातु की, अस्त्र शस्त्र दस हाथ।

दर्श अलौकिक जानिए , दिव्य शक्तियाँ साथ।।


अग्नि तत्व मणिपुर सधे, योग साधना तंत्र ।

साधक मन को साधते, सप्त शती के मंत्र।।


ध्वनि घंटे की शुभ रही, करें जोर से नाद।

दूर प्रेत बाधा करे, दूर करे अवसाद ।।


कीर्ति मान सम्मान हो, साधक के घर द्वार।

रक्षा करने धर्म की, माँ आयीं संसार।।


अनिता सुधीर

Friday, October 8, 2021

माँ ब्रह्मचारिणी

मॉं ब्रह्मचारिणी के चरणों में पुष्प


कठिन तपस्या जब करी,बिल्व पत्र फल पान से।
मनोकामना पूर्ण फिर,चंद्रमौलि के  ध्यान से।।

अक्ष, कमंडल हाथ में,देवि नाम की भव्यता।
प्रेम त्याग तप साधतीं,मातु रूप में दिव्यता।।

ब्रह्मचारिणी रूप में, माँ अम्बे को पूजिए।
कर्म शक्ति अनुरूप ही,कठिन तपस्या कीजिए।।

ब्रह्मचर्य की साधना, धीरज सयंम जानिए।
सदाचार एकाग्रता, पूजन विधि ये मानिए।।

स्वाधिष्ठानी चक्र को,साधक मन जागृत करे।
विचलित चंचल मन सधे,शांत भाव झंकृत करे।।


Wednesday, October 6, 2021

कहमुक़री


**

1)

तुम बिन जीवन सूना लागे

तुम से ही  साँसों के धागे

गीत बनो मेरे ज्यों मधुकर

का सखि साजन?ना सखि दिनकर ।

2)

बनूँ  तुम्हारी  ही परछाईं ,

तुम बिन होती  है कठिनाई

मेरा जीवन तुमको अर्पण 

का सखि साजन?ना सखि दर्पण।।


3)

क्लांत चित्त को शांत करे जो

पल में धमके नहीं डरे वो

मिली प्रीति की फिर से थपकी

का सखि साजन! ना सखि झपकी।।


4)

बिन उसके अब रहा न जाए

जग में ज्यों अँधियारा छाए

गुण गान करूँ उसकी महिमा

का सखि साजन! ना सखि चश्मा।।


5)


वादों का नित जाल फैलाए

उसकी बातों में फँस जाए

बड़ा सयाना कब कुछ देता

का सखि साजन, ना सखि नेता।।


6)


कहाँ मना करने पर माने

नींद खड़ी रहती सिरहाने

हर पल सुनते उसकी खरखर 

का सखि साजन, ना सखि मच्छर।।


7)


उसकी माया के बंधन में

निशिदिन बीते ध्यान मनन में

उस पर जीवन है न्यौछावर

का सखि साजन, ना सखि तरुवर।।


8)


रिक्त हृदय में विश्वास भरे

जीवन में फिर से आस भरे

तन मन की वह हरता पीड़ा

का सखि साजन, ना सखि क्रीड़ा।।


9)


हाथ पकड़ नित संबल देते

उड़ने को तब अम्बर देते 

जब भी थी जीवन की झंझा

का सखि साजन, ना सखि मंझा।।


10)


स्वर्णिम पल जीवन में लाए

झोली भर के सुख दे जाए

उससे ही सजती उर वीथिका

का सखि साजन, ना सखि जीविका।



अनिता सुधीर

Saturday, October 2, 2021

पोशाक


लघुकथा
पोशाक


चाय का कप पकड़े आरती किंकर्तव्यविमूढ़ बैठी थी। 
वेदना उसके मुख पर स्पष्ट दृष्टिगोचर थी 
राजेश! क्या हुआ आरती
पत्नी को झकझोरते हुए बोला..
आरती अखबार राजेश की ओर बढ़ाते हुए.
किस पर विश्वास करें ,सगे रिश्तेदार भी ? 
और 
पाँच माह की बच्ची क्या पोशाक पहने ,ये समाज निर्धारित कर दे.
कहते हुए
बेटी के कमरे की ओर चल दी...


अनिता सुधीर आख्या
लखनऊ