दक्षिणा
***
'मॉम पंडित जी का पेमेंट कर दो '
सुन कर इस पीढ़ी के श्रीमुख से
संस्कृति कोने में खड़ी कसमसाई थी
सभ्यता दम तोड़ती नजर आई थी ।
मैं घटना की मूक साक्षी बनी
पेमेंट और दक्षिणा में उलझी रही,
आते जाते गडमड करते विचारों को
आज के परिपेक्ष्य में सुलझाती रही।
दक्षिणा का सार्थक अर्थ बताने
उम्मीद लिए बेटे के पास आई
पूजन सम्पन्न कराने पर दी जाने
वाली श्रद्धापूर्वक राशि बताई
एकलव्य और आरुणि की कथा सुना
गुरू दक्षिणा का महत्व समझाई
ब्राह्मण और गुरु चरणों में नमन कर
उसे अपनी संस्कृति की दुहाई दे आईं
सुनते ही उसके चेहरे पर विद्रूप हँसी नजर आयी
ऐसे गुरु अब कहाँ मिलते मेरी भोली भाली माई ,
अकाट्य तर्कों से वो अपने को सही कहता रहा
मैं स्तब्ध , उसे कर्तव्य निभाने को कहती आई ।
न ही वैसे गुरु रहे ,न ही वैसे शिष्य
दक्षिणा देने और लेने की सुपात्रता प्रश्नचिह्न बनी
विक्षिप्त सी मैं दो कालखंड में भटकती रही,
दक्षिणा के सार्थक अर्थ को सिद्ध करती रही ।
प्रथम गुरू माँ होने का मैं कर्तव्य निभा न पाई
अपनी संस्कृति संस्कार से अगली पीढ़ी को
परिचित करा न पाई
दोष मेरा भी था ,दोष उनका भी है
बदलते जमाने के साथ सभी ने तीव्र रफ्तार पाई
असफल होने के बावजूद बेटे से अपनी दक्षिणा मांग आयी
तुम्हारे धन दौलत सोने चांदी मकान से सरोकार नहीं मुझे
बस तू नेक इंसान बन कर जी ले अपनी जिंदगी
इंसानियत रग रग में हो,
उससे अपना पेमेंट माँग आयी।
अनिता सुधीर
खरी बात।
ReplyDeleteमॉम पंडित जी का पेमेंट कर दो
ReplyDeleteसारे भाव समाहित, सुंदर
जी सादर आभार
Deleteविषय की अतिसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी सादर आभार
Deleteसही बात आज के युग में वो पंडित ना रहे जो गुरु दक्षिणा से गुजर बसर करते थे। आजकल के पंडित तो बस मुंह खोल कर मोल भाव करते हैं। ये अनुभव मुझे तब हुआ जब मैं अपनी मांँ के अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार गई थी। वहाँ जा कर अनुभव हुआ कि ये भी अब एक बिजनेस बन चुका है।
ReplyDeleteआज के गुरू दक्षिणा नहीं पेमेंट ही लेते हैं।
रेखा जी सादर आभार
DeleteAti sunder,nek insan bane yahi आवश्यक है
ReplyDeleteसही है हर समय युवा पीढ़ी को दोष क्यो दिया
Deleteजाए
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteजी सादर आभार
Deleteजी सादर आभार
ReplyDeleteभौतिक वाद का सही चित्रण
ReplyDelete💐💐
Deleteदो पीढ़ियों के विचारों को बड़ी सुंदरता से समाहित किया है आपने 💐💐
ReplyDeleteआ0 आभार
Deleteआज के परिप्रेक्ष्य में यही हो रहा है,वर्तमान समय में दो पीढ़ियों के विचारों को अत्यंत सहजता से दर्शाया है आपने 🌹🌹🌹🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद सरोज जी
Deleteहार्दिक आभार आ0
ReplyDeleteअत्युत्तम🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३०-१०-२०२१) को
'मन: स्थिति'(चर्चा अंक-४२३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
नवीन पीढ़ी के तर्कों से आज यही अहसास हो रहा है कमी हमारे अंदर ही रही होगी जो संस्कार पहुंचा नहीं पाये उन तक।
ReplyDeleteअंत निशब्द करता ।
सार्थक अभिव्यक्ति।
पंडित जी को पेमेंट करने पर आज के नौजवान ही क्यों, हम बुज़ुर्ग भी सवाल उठाएँगे.
ReplyDeleteभाड़े के पंडितों से पूजा-अर्चना कराने से क्या लाभ होगा और उस से कैसे हमारे संस्कारों, हमारी संस्कृति का, संरक्षण होगा?
कबीर कह गए हैं -
'जाके हिरदे सांच है, ताके हिरदे आप !'
आज के समाज का आइना है ये प्रस्तुति
ReplyDeleteअपनी परंपरा अपने बड़े बुजुर्गो के बारे में क्या सोच रखती है
इसमें गलती हम लोगो की ही है सब आधुनिकता की दौड़ चल रही
ऐसे ही सम सामयिक विषयों को लेखनी में लिखती रहो।