Friday, October 29, 2021

दक्षिणा

दक्षिणा

***
'मॉम पंडित जी का पेमेंट कर दो '
सुन कर इस पीढ़ी के श्रीमुख से
संस्कृति कोने में खड़ी कसमसाई थी 
सभ्यता दम तोड़ती नजर आई थी ।

मैं घटना की मूक साक्षी बनी
पेमेंट और दक्षिणा में उलझी रही,
आते जाते गडमड करते विचारों को
आज के परिपेक्ष्य में सुलझाती रही।

दक्षिणा का सार्थक अर्थ बताने 
 उम्मीद लिए बेटे के पास आई
पूजन सम्पन्न कराने पर दी जाने 
वाली श्रद्धापूर्वक  राशि बताई 

एकलव्य और आरुणि की कथा सुना 
गुरू दक्षिणा का महत्व समझाई 
ब्राह्मण और गुरु चरणों में नमन कर 
उसे अपनी संस्कृति की दुहाई दे आईं

सुनते ही उसके चेहरे पर विद्रूप हँसी नजर आयी 
ऐसे गुरु अब कहाँ मिलते मेरी भोली भाली माई ,
अकाट्य तर्कों से वो अपने को सही कहता रहा
मैं स्तब्ध , उसे कर्तव्य निभाने को कहती आई ।

न ही वैसे गुरु रहे ,न ही वैसे शिष्य
दक्षिणा देने और लेने की सुपात्रता प्रश्नचिह्न बनी
विक्षिप्त सी मैं दो  कालखंड में भटकती रही,
दक्षिणा के सार्थक अर्थ को सिद्ध करती रही ।

प्रथम गुरू माँ  होने का मैं कर्तव्य  निभा न पाई
अपनी संस्कृति  संस्कार से अगली पीढ़ी को
परिचित करा न पाई
दोष मेरा भी था ,दोष उनका भी है 
बदलते जमाने के साथ सभी ने तीव्र रफ्तार पाई

असफल होने के बावजूद बेटे से अपनी दक्षिणा मांग आयी 
तुम्हारे धन दौलत सोने चांदी मकान से सरोकार नहीं मुझे 
बस तू नेक इंसान बन कर जी ले अपनी जिंदगी 
इंसानियत रग रग में हो,
उससे अपना पेमेंट माँग आयी।


अनिता सुधीर

25 comments:

  1. मॉम पंडित जी का पेमेंट कर दो
    सारे भाव समाहित, सुंदर

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  2. विषय की अतिसुन्दर प्रस्तुति

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  3. सही बात आज के युग में वो पंडित ना रहे जो गुरु दक्षिणा से गुजर बसर करते थे। आजकल के पंडित तो बस मुंह खोल कर मोल भाव करते हैं। ये अनुभव मुझे तब हुआ जब मैं अपनी मांँ के अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार गई थी। वहाँ जा कर अनुभव हुआ कि ये भी अब एक बिजनेस बन चुका है।
    आज के गुरू दक्षिणा नहीं पेमेंट ही लेते हैं।

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  4. Ati sunder,nek insan bane yahi आवश्यक है

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    1. सही है हर समय युवा पीढ़ी को दोष क्यो दिया
      जाए

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  5. भौतिक वाद का सही चित्रण

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  6. दो पीढ़ियों के विचारों को बड़ी सुंदरता से समाहित किया है आपने 💐💐

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  7. आज के परिप्रेक्ष्य में यही हो रहा है,वर्तमान समय में दो पीढ़ियों के विचारों को अत्यंत सहजता से दर्शाया है आपने 🌹🌹🌹🙏🙏

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  8. हार्दिक आभार आ0

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  9. अत्युत्तम🙏🙏

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  10. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३०-१०-२०२१) को
    'मन: स्थिति'(चर्चा अंक-४२३२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  11. नवीन पीढ़ी के तर्कों से आज यही अहसास हो रहा है कमी हमारे अंदर ही रही होगी जो संस्कार पहुंचा नहीं पाये उन तक।
    अंत निशब्द करता ।
    सार्थक अभिव्यक्ति।

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  12. पंडित जी को पेमेंट करने पर आज के नौजवान ही क्यों, हम बुज़ुर्ग भी सवाल उठाएँगे.
    भाड़े के पंडितों से पूजा-अर्चना कराने से क्या लाभ होगा और उस से कैसे हमारे संस्कारों, हमारी संस्कृति का, संरक्षण होगा?
    कबीर कह गए हैं -
    'जाके हिरदे सांच है, ताके हिरदे आप !'

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  13. आज के समाज का आइना है ये प्रस्तुति
    अपनी परंपरा अपने बड़े बुजुर्गो के बारे में क्या सोच रखती है
    इसमें गलती हम लोगो की ही है सब आधुनिकता की दौड़ चल रही
    ऐसे ही सम सामयिक विषयों को लेखनी में लिखती रहो।

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