Tuesday, July 12, 2022

स्वर्ण विहग के घाव


 अवलोकन

आ0 नवल जी आपने अपना बहुमूल्य समय देकर उत्कृष्ट भावपूर्ण अवलोकन कर मुझे कृतार्थ कर दिया 

आप का हृदयतल से आभार


स्वर्ण विहग के घाव : कुछ पन्ने इतिहास के (खंड काव्य )

कवयित्री : श्रीमती अनिता सुधीर आख्या जी

प्रकाशक : विज्ञात प्रकाशन

मूल्य : 250 रुपए।


एक अवलोकन


इतिहास प्रायः एक नीरस विषय के रूप में देखा जाता है। लेकिन जब उसी इतिहास को काव्य की सरस कूँची से रस रंजित कर प्रवाहमय कर दिया जाए तो? आप बिलकुल ठीक समझ रहे हैं। मैं ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित एक खंड काव्य की बात कर रहा हूँ, जिसकी रचयिता हैं आदरणीया अनिता सुधीर जी। अनिता जी लखनऊ की रहनेवाली हैं और रसायन विज्ञान में अनुसंधान किया है इसीलिए जब बीकर और त्रिपाद पर रसायन विज्ञान के सूत्र के स्थान पर ऐतिहासिक तथ्यों को चढ़ाईं तो प्रतिफल में यह खंड काव्य बन गया।


एक बार बातों ही बातों में उन्होंने कहा था कि आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में वे एक पुस्तक प्रकाशित करेंगी। मैंने कहा, अच्छी बात है। किंतु तब मुझे कहाँ पता था कि वे इतिहास पर काव्य रच डालेंगी। अक्का, आपके इस भगीरथ प्रयत्न की जितनी भी सराहना की जाए, वह कम ही होगी। आपकी इस अद्वितीय, स्तुत्य कर्तृत्वशक्ति को सादर नमन।


अस्तु, चार सर्गों में विभाजित इस पुस्तक का प्रारंभ ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आगमन से हुआ है। तथा चरणबद्ध तरीके से विविध घटनाओं को समेटते हुए गोवा मुक्ति के ऑपरेशन विजय 1961 तक की घटनाओं को तीन सर्गों में समाहित कर लिया गया है। चौथा सर्ग अखंड भारत के स्वप्नदृष्टा को समर्पित है, जिसमें लगभग 39 महापुरुषों के बारे में वर्णन/मंडन किया गया है। पुस्तक का अंतिम पृष्ठ -वंदे मातरम, कवयित्री के राष्ट्र प्रेम का प्रकटीकरण है।


आदरणीया अनिता जी एक उत्कृष्ट छंद साधिका हैं। अनगिनत छंदों पर वे एकाधिकार रखते हुए समसि संधान करती हैं। अतः इस पुस्तक की रचनाएँ भी छांदस ही होगी, यह तो स्पष्ट है। किंतु कौन से छंद में?  मूलतः इस खंड काव्य का आधार वीर /आल्हा छंद है, जो कथानक को प्रस्तुत करने के निमित्त पूर्णतः समीचीन है। साथ ही प्रत्येक घटना की भूमिका को प्रदर्शित करने के लिए सवैया छंदों का प्रयोग हुआ है। वस्तुतः वीर छंद में सवैया की छौँक खंड काव्य की लावण्यता और रोचकता में चार चाँद लगा दे रहा है। साथ ही एकरागात्मकता के विखंडन हेतु बीच-बीच में भूमिका में सवैया के स्थान पर दोहा मुक्तक तथा कुंडलिया का भी प्रभावी प्रयोग किया गया है। यह कवयित्री के सृजन चातुर्य का परिचायक है।


पुस्तक प्रारंभ में ही भारत वर्णन में प्रस्तुत एक मत्तगयंद सवैया देखिए -


भारत गौरव गान लिखें जब, पुण्य धरा लगती सम चंदन।

जन्म लिए प्रभु राम यहाँ पर, धर्म सनातन का अभिनंदन।

मानवता पहचान बना कर, सत्य करें इसका नित वंदन।

पावन संस्कृति पूज रही युग, जीवन में भरती स्पंदन।


चतुर्वेद का भाव बोध लिए हुए हैं - ये चार पंक्तियाँ।


ईस्ट इंडिया के आगमन (31 दिसंबर 1600) को वर्णित करता एक दोहा मुक्तक देखिए -


ईस्ट इंडिया कंपनी, पहुँची भारत द्वार।

आए जेम्स नरेश फिर, करने को व्यापार।

डच से समझौता किए, पुर्तगाल अवरोध,

जहाँगीर के काल में, पाए फिर अधिकार।


शिल्प एवं भाव का संयोजन करते समय सृजनात्मक स्वतंत्रता तो ली गई है किंतु कहीं भी तथ्यों की प्रामाणिकता के साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं की गई है। खंड काव्य का संकल्प लेने के साथ ही आख्या जी ने उपलब्ध प्रामाणिक ऐतिहासिक ग्रंथों का सूक्ष्म अवलोकन किया है। बारीक से बारीक तथ्यों को जाँचा है परखा है, तब जाकर उन्हें शब्दबद्ध किया है। और यदि मैं यह कहूँ कि उन्होंने न केवल तथ्यों को परखा है बल्कि घटनाओं को आत्मसात कर उन्हें अनुभूत किया है, अमानवीय यातनाओं के अनुभास से रोई हैं, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। उनकी इसी मानवीयता की झलक जालियाँवाला बाग की घटना को वर्णित करते हुए इन पंक्तियों में प्रकट हो गई है -


कूप गवाह बना लाशों का, और मची थी चीख पुकार।

क्षोभ हुआ फिर लिखते -लिखते, पढ़कर वह कपटी व्यवहार।


इसी प्रकार काकोरी कांड के वीरों की फाँसी की सजा को वर्णित करते हुए लिखती हैं -


एक दिवस ही सजा मिली थी, और जेल में आया काल।

हँसते -हँसते फाँसी चढ़ते, भारत माँ के चारों लाल।


तथ्यों को परोसते हुए विदुषी का अभिमत भी प्रकट हो उठता है। एक कुंडलिया देखिए -


पढ़ते जो इतिहास को, पीड़ा अपरंपार।

कुटिल विभाजन नीति से, बहे अश्रु की धार।

बहे अश्रु की धार, बीज जो जब थे रोपे।

फसल आज तैयार, पीठ खंजर में घोपे।

सत्य छिपा है मौन, दोष गुजर पर मढ़ते।

झेले दंश समाज, झूठ को नित ही पढ़ते।


यह इतिहास की लेखिका नहीं अपितु राष्ट्र की प्रहरिन्, समाज की प्रबुद्ध चिंतक ही लिख सकती है।


कुल मिलाकर कही जाए तो ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन से लेकर प्लासी का युद्ध, संन्यासी विद्रोह, बक्सर युद्ध, स्वतंत्रता आंदोलन, मैग्नाकार्टा, बंग-भंग, स्वदेशी आंदोलन से होते हुए उग्र राष्ट्र वाद,सूरत अधिवेशन आदि प्रत्येक महत्वपूर्ण घटनाओं को क्रमिक रूप से इस पुस्तक में समाहित किया गया है। काव्य के गुण धर्म के अनुसार बड़े ही रोचक तरीके से बिना किसी तथ्यात्मक विचलन के घटनाओं का वर्णन पुस्तक की उपयोगिता में चार चाँद लगा रहा है। साथ ही इसमें महापुरुषों की जीवनी को भी समाहित किया गया है। इस हिसाब से यह पुस्तक विद्यालय के बच्चों के लिए  एक रेडी रैकोनर का काम करेगी। 


 आजादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में एक पठनीय एवं संग्रहणीय पुस्तक के सफल प्रकाशन पर मैं आदरणीया अनिता सुधीर आख्या जी को अनंत शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ। 🌹🌹

आपकी लेखनी यों ही निर्बाध प्रवाह मान रहे।


जय हिंद

वंदे मातरम।


--©नवल किशोर सिंह

12.07.2022

3 comments:

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