Wednesday, July 20, 2022

माया

 पावन मंच को नमन

कुंडलियां

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माया भ्रम के जाल में, भेद छिपा अति गूढ़।

जग-मिथ्या के अर्थ में, उलझी मैं मतिमूढ़।।

उलझी मैं मतिमूढ़, जगत यदि मिथ्या माना ।

परम ब्रह्म ही सत्य, कर्म की गति को जाना।।

यदि झूठा संसार, झूठ क्या मानव काया।

सत्य गुणों से जान, सगुण निर्गुण की माया।।

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माया ठगिनी डोलती, बदल-बदल कर रूप।

धन दौलत सब चाहते, रहे रंक या भूप।।

रहे रंक या भूप, लगी तृष्णा जो मन की।

बिक जाता ईमान, मिटे पर भूख न इनकी।।

करा रही नित पाप, रुपैया जी भर खाया।

बुझी नहीं है प्यास, यही दौलत की माया।।


अनिता सुधीर






6 comments:

  1. गहन चिंतन। गूढ़ दार्शनिक भाव। अप्रतिम। अतुल्य। हार्दिक बधाई 🌹🌹

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  2. "करा रही नित पाप, रुपैया जी भर खाया।
    बुझी नहीं है प्यास, यही दौलत की माया।।"
    क्या बात .. बहुत खूब

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  3. बुझी नहीं है प्यास, यही दौलत की माया🙏🙏 सटीक सार्थक कुंडलिया छंद🙏

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  4. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय

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