Thursday, August 25, 2022

तुम्हारी आँखों में

 तुम्हारी आँखों में...



गजल


जीवन का मनुहार, तुम्हारी आँखों में।

परिभाषित है प्यार, तुम्हारी आँखों में।।


छलक-छलक कर प्रेम,भरे उर की गगरी।

बहे सदा रसधार, तुम्हारी आँखों में।।


तुम जीवन संगीत, सजाया मन उपवन

भौरों का अभिसार, तुम्हारी आँखों में।।


पूरक जब मतभेद, चली जीवन नैया

खट्टी-मीठी रार, तुम्हारी आँखों में।।


रही अकिंचन मात्र, मिला जबसे संबल

करे शून्य विस्तार, तुम्हारी आँखों में।।


किया समर्पण त्याग, जले बाती जैसे

करे भाव अँकवार, तुम्हारी आँखों में।।


जीवन की जब धूप, जलाती थी काया

पीड़ा का उपचार, तुम्हारी आँखों में।।


अनिता सुधीर आख्या

16 comments:

  1. Dil ki baat tumhari kalam se .... bahut pyari kavita

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  2. करे शून्य विस्तार....... उत्तम

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  3. वाह !म
    पीड़ा का उपचार … सब कुछ निहित कर दिया तुम्हारी लेखनी ने उन अप्रतिम आँखो में 👌👌बहुत ख़ूब

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  4. बहुत सुंदर रचना दीदी 🙏🙏❤❤

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 26 अगस्त 2022 को 'आज महिला समानता दिवस है' (चर्चा अंक 4533) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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  7. क्या बात है
    बहुत अच्छी और सुंदर गज़ल

    बधाई

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  8. बहुत सुंदर सृजन सखी ।
    मन को पल्लवित करती अभिनव रचना।

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  9. मनभावन है यह अभिव्यक्ति, निस्संदेह।

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