Friday, September 16, 2022

कुर्सी

 
म्यूजिकल चेयर

कुर्सी 
हाए कुर्सी...
कुर्सी की दौड़ 
आगे निकलने की होड़ 
जोड़-तोड़
तरोड-मरोड़
संगीत की धुन ..
धुन और ताल 
भाग्य और काल
कभी तेज कभी धीरे 
कभी ऊपर कभी नीचे
अचानक बंद होता संगीत
खींचते पाँव
ढूंढ़ते ठाँव
अफरातफरी 
कुर्सी की लपक 
खींच ली कुर्सी
टूटे सपने !
अब कुर्सी एक 
दावेदार तीन
तीन टांग की कुर्सी 
साधे संतुलन ...
कुर्सी 
सत्ता की कुर्सी 
लोभ की कुर्सी
मठ की कुर्सी
मुफ्त का तमाशा
मीडिया की चांदी..
और औरर औररर  ...
 निरीह बेबस जनता ...

अनिता सुधीर आख्या

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-09-2022) को "भंग हो गये सारे मानक" (चर्चा अंक 4554) पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. जनता ही इस कुर्सी के खेल का खमियाजा भुगत रही है।

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  3. वाहसुन्दर,सहज, सटीक व्यंग्य!

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  4. करारा व्यंग्य सखी! सटीक अभिव्यक्ति।

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