Thursday, September 29, 2022

आधुनिकता

नवगीत

फुनगी पर जो
बैठे नंद।
नव पीढ़ी के
गाते छंद।।

व्यथा नींव की
सहती मोच
दीवारों पर
चिपकी सोच
अक्ल हुई अब
डिब्बा बंद।।

ऊँचे तेवर 
थोथे लोग
झूम रहे तन
मदिरा भोग
उलझे धागे
जीवन फंद।।

चढ़ा मुलम्मा
छोड़े रंग
बेढंगी ने 
जीती जंग
आजादी की
मचती द्वंद्व।।

मर्यादा की
बहकी चाल
लज्जा कहती
अपना हाल
आभूषण अब 
पहनें चंद।।

अनिता सुधीर

7 comments:

  1. उफ्फ्फ maza aagaya padhkar. सटीक लेकिन फ़िर भी मधुर

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर रचना आपकी

    ReplyDelete
  3. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia
    let's be friend

    ReplyDelete

विज्ञान

बस ऐसे ही बैठे बैठे   एक  गीत  विज्ञान पर रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान । दीवार धकेले दिन भर हम ,फिर भी करते सब बेगार। हुआ अँधे...