मुक्तक
टेढ़ी डगर पर पाँव का,अब मखमली सत्कार हो।
थी पीर वर्षों से सही, इन राह से अब प्यार हो।।
घट रिक्त जीवन का रहा, हर मोड़ पर जो प्यास थी
यह आस लेकर चल पड़ी,अब बूँद से अभिसार हो।।
अनिता सुधीर आख्या
बस ऐसे ही बैठे बैठे एक गीत विज्ञान पर रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान । दीवार धकेले दिन भर हम ,फिर भी करते सब बेगार। हुआ अँधे...
भाव पूर्ण मुक्तक।
ReplyDeleteभावपूर्ण मुक्तक
ReplyDeleteवाह
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