Saturday, August 5, 2023

ग़ज़ल

 एक प्रयास


कब सफर पूरा हुआ है ज़िंदगी का हार कर ।

मंजिलों की शर्त है बस मुश्किलों को पार कर।।


साथ मिलता जब गमों का वो मज़ा कुछ और है

कर सुगम अब राह उनसे हाथ तो दो चार कर ।।


मुश्किलों के दौर में बस हार कर मत बैठना

आसमां को नाप लेंगे आज ये इकरार कर ।।


वक़्त की इन आँधियों में क्या बिखरना है सही

दीप जलता ही रहेगा तू  हवा पर वार कर।।


आशियाने आरजू के ही वहीं  पर  टूटते ।

हर किसी पर बेवजह ही क्यों सदा  एतबार कर।।


ख्वाहिशों के आसमां में अब सितारे टाँक दे

ओढ़ चूनर चाँदनी की जिंदगी उजियार कर ।।


अनिता सुधीर आख्या

12 comments:

  1. Kar liya ikraar humne bhi

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    1. वाह वाह धन्यवाद उषा

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  2. 'वक़्त की इन आँधियों में क्या बिखरना है सही, दीप जलता ही रहेगा तू हवा पर वार कर' और 'आशियाने आरज़ू के ही वहीं पर टूटते, हर किसी पर बेवजह ही क्यों सदा ऐतबार कर' जैसे बेहतरीन शेरों से सजी हुई क़ाबिल-ए-तारीफ़ ग़ज़ल है यह।

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  3. क्या खूब लिखा है मोहतरमा अपने

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  4. खूबसूरत एवं भावपूर्ण गज़ल

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  5. वाह ...बहुत ही अच्छा लिखा है अनिता शानदार
    ख्वाइशों के आसमां में अब सितारे टांक दे
    ओढ़ चूनर चांदनी की जिंदगी उजियार कर

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    1. आपका हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद

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  6. बहुत सुंदर और आपको ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं।

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