Tuesday, August 22, 2023

वरिष्ठ नागरिक


वरिष्ठ नागरिक


वरिष्ठता घर भीतर बैठी
सुने भित्ति की क्यों भनभन

खबरों में दिन अठखेली कर
जब लोरी सुनने आता
उथल-पुथल मन नींद चुरा कर
राग रात के दे जाता
खेद जताते गीतों के स्वर
बाँसुरिया से कुछ अनबन।।

अनुभव करता माथापच्ची
अपने सुख-दुख किससे बाँटे
सजा रहे थे फुलवारी जब
कहाँ गिने पग के काँटे
उम्र खड़ी सठियाई फिर भी
माली देता आलंबन।।

दुर्ग अभेद्य बुढ़ापे में भी
नींव अनागत की डाले
थका हुआ तन फिर से सोचे
सह लेंगे पग के छाले
शेष कर्म को पूर्ण करें अब
जीवन फिर से हो मधुबन।।

अनिता सुधीर आख्या

चित्र गूगल से साभार


























4 comments:

  1. कोशिश तो यह होनई चाहिए कि हर साल केक पर बढ़ती मोमबत्तियों की संख्या पर चिंता ना करते हुए उनसे बढ़ते उजास को महसूस कर खुश हुआ जाए !

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  2. कहां गिने पग के कांटे ......बहुत सुंदर

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  3. थका हुआ तन फिर से सोचे, सह लेंगे पग के छाले। मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति। निस्संदेह !

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मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...