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तृप्ति क्षुधा धन से कब हो,धनवान करोड़ डकार रहे।
लोभ बढ़ाकर पाप करें, कितना वह पैर पसार रहे।।
जीवन में अँधियार भरे, कुल का नित मान उतार रहे।
भूल गए असली धन को, कब सत्य प्रताप विचार रहे?
अनिता सुधीर आख्या
राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं दर्शन चिंतन राम का,हो जीवन आधार। आत्मसात कर मर्म को,मर्यादा ही सार।। बसी राम की उर में मूरत मन अम्बर कुछ ड...
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