बाल मन
चांद देखा जब सिया ने,भाव कोमल हँस पड़े हैं।
दृश्य पावन यह मनोरम,कल्पना लेकर उड़े हैं।।
शब्द की सामर्थ्य कहती,बचपना कब लिख सके हम
ओट से आ चांद बोले,हम निकट ही नित खड़े हैं।।
अनिता सुधीर आख्या
सहकर सबके पाप को,पृथ्वी आज उदास। देती वह चेतावनी,पारा चढ़े पचास।। अपने हित को साधते,वक्ष धरा का चीर। पले बढ़े जिस गोद में,उसको देते पीर।। दू...
हम निकट ही नित खड़े हैं। बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteवाह
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद आ0
Deleteइतने सुंदर भाव! प्रशंसा हेतु शब्द ही नहीं हैं।
ReplyDelete