मुक्तक
माँ जन्मी अपने तन जब,वह भाव अघाती है।
सृजन पीर माधुर्य लिए,नित प्रीति लगाती है।।
करे गर्भ जब अठखेली,धड़कन सरगम बनती,
कोख सींच आशाओं से,मन द्वार सजाती है।।
अनिता सुधीर आख्या
माता कालरात्रि *** कालरात्रि की अर्चना,सप्तम तिथि को कीजिए। काल विनाशक कालिका,शुभंकरी को पूजिए।। रक्त बीज संहार जब,जन्म हजारों रक्त का। दान...
सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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