मुक्तक
ग़मों को उठा कर चला कारवां है।
बनी जिंदगी फिर धुआं ही धुआं है।।
जहां में मुसाफ़िर रहे चार दिन के
दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है।।
अनिता सुधीर आख्या
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं गीत कहां छुपे तुम बैठ गए हो,हे गोकुल के नाथ। आन विराजो सबके उर में,लिए तिरंगा हाथ।। ग्वाल बाल के अंतस में दो,द...
सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद हरीश जी
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
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