अमृत
मौतें तांडव कर रहीं,मिलता नहीं इलाज।
अमृत कलश की सिद्धियां,मिल जाएं फिर आज।।
स्वयं मौत का डर नहीं,पी लें अमृत आप।
रहे अमरता आपकी, रहे अमिट सी छाप।।
मुरलीधर की बाँसुरी,छेड़े मीठी तान।
प्रीत राग सुनकर हुआ,शुद्ध अमृत का पान।।
मंथन जीवन भर किया ,लगा नहीं कुछ हाथ ।
पान अमृत का तब हुआ,सद्गुरु जब हैं साथ ।।
जीवन अद्भुत रंग में,करें आप स्वीकार।
अमृत मिले या विष मिले, मिले नियति अनुसार।।
अमृत छोड़ जो विष पिये,जग में वो आराध्य।
सुख वैभव को त्यागते, लिए सदा वैराग्य।।
अनिता सुधीर आख्या
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