Thursday, July 20, 2023

महंगाई


 नवगीत

*महँगाई*



देख बढ़ी महँगाई

श्वास उधारी में फँसती


सपने महँगे होते 

जब घर में आटा गीला

कैसे चने भुनाएँ

जब चूल्हा जलता सीला

भार झोपड़ी सहकर

फिर गड्ढों में जा धँसती।

देख बढ़ी महँगाई

श्वास उधारी में फँसती।।


थैले भर रुपयों  में

मुट्ठी भर सब्जी आती

लाल टमाटर हुलसे

जब थाली सूखी खाती

पेट पीठ अब चिपके

दाने को भूख तरसती।

देख बढ़ी महँगाई

श्वास उधारी में फँसती।।


नया कलेवर पहने

नित छज्जे चढ़ती जाती

ताक धिना-धिन करके

नए-नए नृत्य दिखाती

बढ़ा जेब पर बोझा

दिल्ली निर्धन पर हँसती।

देख बढ़ी महँगाई

श्वास उधारी में फँसती।।


अनिता सुधीर आख्या




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