Monday, July 17, 2023

विपदा

विपदा

नवगीत

विपदा जब द्वारे 
नहीं बिखरना

जीवन ने खेले
खेल निराले
जब जीत हार में 
पग में छाले
फिर पल ने बोला
सदा निखरना ।।

शतरंज बिछी है
घोड़ा ढैया
फिर पार लगाता
प्यादा नैया
तब कहें गोटियाँ
नहीं सिहरना।।

जीवन में दुख की
धूप सताती
सुख छत्र लिए फिर
छाया आती
विश्वास कहे अब
नहीं भटकना।।

अनिता सुधीर

2 comments:

  1. बहुत सुंदर ! उत्कृष्ट ! कंठस्थ करने योग्य नवगीत जिसे आजीवन विस्मरण न किया जाये ! इतने अल्प शब्दों में पिरोकर जीवन-दर्शन का काव्यमय प्रस्तुतीकरण विरले ही दृष्टिगोचर होता है।

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    1. आपके प्रेरणात्मक प्रतिक्रिया लेखनी को संबल प्रदान करती है आ0
      सादर आभार

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