Saturday, July 8, 2023

बरसात

उल्लाला छन्द आधारित गीतिका
समान्त   'आत'
पदांत      'में'
**

हँसे खेत खलिहान सब,इस मौसम बरसात में।
पाकर प्रेम फुहार को,भीगे भाव प्रपात में।।

चूल्हा सीला देखता,कब उसमें भी आग हो
जब निर्धन की झोपड़ी,टप-टप टपके रात में।।

बसी गृहस्थी कोसती,ऋतु भर की अति वृष्टि को
मनुज कमाई डूबती, मौसम के आघात में।।

सुन ध्वनि दादुर मोर की,धँसी सड़क यह सोचती।
दुर्घटना कब तक बचे, सुख दुख के आयात में।।

नित पानी में तैरता,दावा क्षेत्र विकास का
बंद पड़ी हैं नालियाँ, सरकारी उत्पात में।।

वृक्षारोपण अब करें, रोकें नद्य जमाव को।
पूरी हो परियोजना, देरी क्यों हो बात में।।

क्लांत नीतियाँ हो व्यथित,समाधान को ढूँढ़तीं
पावस कब लेकर चले, जीवन सुखद प्रभात में।।

अनिता सुधीर आख्या

13 comments:

  1. Replies
    1. आपका हार्दिक आभार

      Delete
  2. सादर आभार सखी

    ReplyDelete
  3. वाह ……वर्षा ऋतू की खूबसूरती पर तो अनेक कवितायेँ हैं परन्तु कुछ लोगो के लिए वर्षा उतनी सुखद नहीं होती I वर्षा के सभी प्रभावों को समेटे मन को द्रवित करती एक सुन्दर रचना 👌👌💐💐

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद अमिता
      तुम्हारे स्नेह भरी सराहना मेरा सम्बल है

      Delete
  4. शब्दों को क्रमबद्ध कर बरसात में पीड़ित लोगो की आत्मा की चीत्कार को सखी तुमने ऐसा हमारे समक्ष उतारा की अब ऐसे जन समुदाए के लिए कुछ सार्थक करने का संकल्प ले ही लिया 🙏🙏धन्य है तुम्हारी लिखनी

    ReplyDelete
    Replies
    1. सखी लेखनी तुम सब के सानिध्य में धन्य हो जाती है
      तुम्हारी प्रशंशा और लेखनी के मर्म तक पहुंचने के लिए हार्दिक आभार

      Delete
  5. वाह लाजबाव पंक्तियां

    ReplyDelete
  6. क्या बात है प्रिय अनिता जी।बारिश के बहाने से और चीजेँ बाहर निकल आईं।बढिया लिखा है आपने।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏

    ReplyDelete
  7. आ0 हार्दिक आभार

    ReplyDelete

विज्ञान

बस ऐसे ही बैठे बैठे   एक  गीत  विज्ञान पर रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान । दीवार धकेले दिन भर हम ,फिर भी करते सब बेगार। हुआ अँधे...