तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Friday, January 31, 2020

यादें

बीती यादें कोष में ,मिले जुले हैं भाव ।
कुछ यादों से सुख मिले,कुछ से रिसते घाव ।
कुछ से रिसते घाव,भूलना इनको चाहा ।
कब तक सुनें कराह,किया घावों को स्वाहा।
कहती अनु ये बात ,गरल वो कब तक पीती।
जीवन की अब साँझ ,भुलाईं बातें बीती ।

बातें छोटी ही सही,बिगड़ रहे सम्बन्ध।
सहन शक्ति का ह्रास हैं,छूटा जाये स्कंध।
छूटा जाये स्कंध,बने थे  कभी सहारा ।
हुई अहम की जीत,छूटता साथी प्यारा।
बीत गया वो काल,सुखद थी बीती रातें ।
लायें वही प्रभात,भूलिये छोटी बातें ।

©anita_sudhir

Wednesday, January 29, 2020

शारदे

घनाक्षरी छन्द

श्वेत वसन धारिणी ,   मयूर हंस वाहिनी ,
जयति माँ शुभासिनी ,करुणामयी शारदे ।

शुद्ध भाव  प्रदायिनी,हस्त पुस्तक वाहिनी
सद्बुद्धि विद्या दायिनी,लेखनी सँवार दे ।

वेद की तुम स्वामिनी,निर्मल मृदुभाषिणी,
हृदय में प्रीत भर, जीवन को तार दे ।

महापातक नाशिनी ,सौभाग्य यशदायिनी,
देकर आशीष देवी ,तम से उबार दे ।

अनिता सुधीर












ऋतुराज

*विष्णुपद छन्द
26 मात्रिक मापनी मुक्त
16,10 यति ,अंत गा वाचिक
**
*
मौसम ने अब ली अँगड़ाई,शीत प्रकोप घटे,
नव विहान की आशा लेकर,अब ये रात कटे।

लगे झूलने बौर आम पर,पतझड़ बीत रहा ,
गुंजन कर भौंरा अब चलता ,है मकरंद बहा।

उगता सूरज लिये लालिमा ,नभ में चाँद छिपा ,
तमस दूर कर करे उजाला ,दिनकर करे कृपा।

पीली चूनर ओढ़े धरती,कलियां मुस्कायीं
प्रकृति छेड़ती मधुर रागिनी,खुशियां हैं छायीं।

बासंती हो तन मन झूमे,नाच रही सखियाँ,
सजा रहे बेटी की डोली ,भर आती अँखियाँ।

कोयल कुहुके डाली डाली,मुग्ध  बयार चले,
झूम झूम के प्रेमी देखो  मिल रहे हैं गले।

पूजते विष्णु महेश तुमको,माँ हंस वाहिनी,
बुद्धि ज्ञान की देवी हो तुम,श्वेत वसन धरिणी।

बसंत पंचमी शुभ दिवस में,आदि ज्ञान करिये,
मातु शारदे आशीष मिले,मान सदा रखिये ।

©anita_sudhir

Tuesday, January 28, 2020

कागज पर उतरे आक्रोश



नवगीत

कलम भरे रखती है कोश,
कागज पर उतरे आक्रोश।

देखा समाज में जब त्रास
निकल पड़ी मन की भड़ास।
भावों की कोर्ट कचहरी में,
शब्दों की तप्त दुपहरी में।
रहता है दो दिन का जोश,
फिर हो जाते सब खामोश ।

कलम ..
कागज पर उतरे आक्रोश।

यही कहानी है हर बार ,
भुला चुके ये सब संस्कार ।
जलतीं मोमबत्ती हजार ,
जुलूस में रहे भीड़ अपार।
गंदी नाली के वो कीच,
कहाँ बचा उनमें अब होश।

कलम ..
कागज पर  उतरे आक्रोश ।

संरक्षण गृहों के विवाद,
बढ़ती है इनकी तादाद।
कहाँ सुरक्षित है मासूम,
अपराधियों का है हुजूम।
मजबूरी में जिस्मफरोश,
करवाते ये सफेदपोश ।

कलम ..
कागज पर  उतरे आक्रोश ।

हम भारत की हैं संतान ,
कमजोर नहीं हमको जान।
लेना होगा ये अधिकार,
नहीं रहे अब भ्रष्टाचार ।
व्यवस्था रहे क्यों बेहोश
क्यों बैठो अब खामोश

कलम..
कागज पर  उतरे आक्रोश ।

अनिता सुधीर
लखनऊ

Sunday, January 26, 2020

तिरंगा


चौराहों, बाजारों  में बिकते
तिरंगे  का रंग स्वरूप आकार
जाने कब कहाँ खो गया ।
कुछ अनगढ़ हाथों  से
केसरिया से लाल तो
जाने कब का हो गया।
कभी कहीं आयत से गोल,
कही हरा केसरिये से
ऊपर हो गया ।
जिन्हें तिरंगे का भान नही
वो सम्मान कहाँ कर पाएंगे।
हम देशभक्ति दिखलाते है
मोलभाव कर ,विजयी हो
उस गरीब से
तिरंगा खरीद लाते है।
जो अनमोल तिरंगे का मोल लगाया
तो वो सम्मान कहाँ  दे पायेंगे ।
दो घंटे मे आजादी मना स्कूलों
में झंडा  फहराते है ,
टेम्पो रिक्शा की शान बढ़ा
सड़को पर पड़ा
 पैरो से कुचला जाता है
तो तिरंगा नही
सम्मान देश का पैरो तले
रौंदा जाता है ।
जब आजादी का पर्व  मनाना
तो तिरंगा उन्हें सौपना
जो कर सके इसकी हिफाजत ,
इसका सम्मान करना बतला देना ।
ये महज कागज का टुकड़ा नही
प्रतीक है हमारी अस्मिता का
हमारी निष्ठा  ,आत्मा ये
देशभक्ति रगों में भर देना ।

Saturday, January 25, 2020

एकता


**
अखंडता अरु एकता ,भारत की पहचान।
विभिन्न संस्कृति देश की,इस पर है अभिमान।

जाति,धर्म निज स्वार्थ दे,गद्दारी का घाव ।
देशभक्ति ही धर्म हो  ,रखें एकता भाव ।

मातृभूमि रज भाल पर ,वंदन बारम्बार।
अमर तिरंगा हाथ में,रहे एकता सार ।

सर्व धर्म समभाव हो ,करिये सभी विचार।
भारत के निर्माण में ,बहे  एकता  धार। ।

देशप्रेम की अग्नि में ,जीवन समिधा डाल।
तेल एकता का पड़े ,उन्नत होगा  काल ।।

अपने हित को साधिये,सदा देश उपरान्त ।
जयभारत उद्घोष से ,हो एका सिद्धांत ।


अनिता सुधीर

वैरागी

**
मनुष्यत्व को छोड़
देवत्व को पाना ही
क्या वैरागी कहलाना ।
पंच तत्व निर्मित तन
पंच शत्रुओं से घिरा
 जग के प्रपंच में लीन
इस पर विजय
संभव कहाँ!
हिमालय की कंदराओं में
जंगल की गुफाओं  में
गरीब की कुटिया में
या ऊँची अट्टालिकाओं में!
कहाँ मिलेगा वैराग्य
क्या करना होगा सब त्याज्य
क्या बुद्ध बैरागी रहे
या यशोधरा कर्तव्यों को
साध वैरागिनी रहीं !
गेरुआ वसन धारण किये
हाथ में कमंडल लिये
सन्यासी बने
वैरागी बन पाए
या संसारी संयमी हो
कर्त्तव्य साधता रहा
वही वैरागी रहा ।
ज्ञान प्राप्ति की खोज
दर दर भटकते लोग
निर्लिप्त में लिप्त
वो वैरागी
या जो लिप्त  में निर्लिप्त
हो जाये,
वो वैरागी कहलाये।
©anita_sudhir

Thursday, January 23, 2020

विज्ञान


**
जब नहीं था विज्ञान,जीना था कितना आसान
बच्चे बोझा ढो रहे ,अपनी  किस्मत को रो रहे

न्यूटन की गति ने मारी है मति
नापने के मानक कर रहे अति ।
दिन भर दीवार को धक्का दिया
लोगों ने फिर निकम्मा क्यों कहा ।
जो भारी है उसका अधिक जड़त्व
जल का क्यों अलग चार पर घनत्व।[ 4℃]

बॉयल ने दाब बढ़ा आयतन घटाया
चार्ल्स ने ताप बढ़ा आयतन बढ़ाया ।
ये सब देख देख कर  माथा चकराया
ताप को माइनस दो सौ तिहत्तर पहुंचाया।
केमिस्ट्री की मिस्ट्री समझ न आई
हाइजेनबर्ग ने क्या अनिश्चितता  जताई ।

ज़्या कोज्या में  दिल ऐसा  लटका
ब्याज और क्षेत्रफल में माथा खिसका।
ए प्लस बी के स्क्वायर में फंसे  रहे
प्रमेय और रेखाओं से अब  डर   लगें।
टैक्स अभी देना नहीं तो क्यों पढ़ें
समुच्चय के सवालों से क्यों आगे बढ़े।

मैट्रिक्स तू क्यों दो जगह विराजमान है
लैमार्क ,डार्विन पर जीवन गतिमान है ।
जीव जंतु पौधों के क्यों विशेष नाम है
वायरस बैक्टीरिया कवक से जीना हराम है ।
इतने तंत्र  पढ़ कर निकली छोटी सी जान है
बोस जी और कह गए , पौधों में भी जान है ।

अब जब विज्ञान आया जीवन में उजाला लाया,
इसने मंगल और चाँद तक यान पहुँचाया है
योग  के साथ विज्ञान का हुआ अद्भुत  संजोग ,
विश्व गुरु बना भारत ,करके ये उत्कृष्ट प्रयोग ।

दोहा मुक्तक


1)
दोहाशाला मंच पर ,लिखते मन की बात ।
सीखे नित नूतन विधा ,कितने थे अज्ञात।
गुणीजनों के साथ से ,करते सृजन अपार ,
शब्द सम्पदा से मिला ,सुंदर सुखद प्रभात ।
2)
अपने हित को साधिये,सदा देश उपरांत।
वीरों ने गाथा लिखी ,कहीं नहीं  दृष्टांत।
कीर्ति पताका फैलती,ध्वज का ऊँचा गान,
देशप्रेम अनमोल है ,अडिग रहा सिद्धान्त।
3)
ठिठुरी बूढ़ी हड्डियां ,थरथर काँपे गात।
निर्धन जन की झोपड़ी,टपकी पूरी रात ।
हाड़ कँपाती ठंड में,सभी हाल बेहाल ,
बरसें घन जो शीत में,हुये कठिन हालात।
4)
तिमिर हटाने रवि चला ,लेकर नवल प्रभात।
पतझड़ का मौसम गया, हरे हुये अब पात ।
पीली सरसों खेत में ,लगे आम पर बौर ,
धरा करे श्रृंगार अब ,खुशियों की सौगात ।
5)
बिस्तर पर की सिलवटें,बोलें पूरी बात ।
साजन हैं परदेश में ,मिला बड़ा आघात ।
विरह अग्नि में तन जले,तनिक न मिलता चैन,
खान पान की सुध नहीं,बदलें करवट रात।
6)
बोली माँ ,इस फाग में ,नहीं आ रहे तात ।
हुआ मलिन मुख लाल का,सुन कर माँ की बात ।
तात तुम्हारे पुलिस में,हँस कर सहते वार ,
पहरा दें दिन रात वो ,सेवा में  तैनात  ।
7)
बसिये प्रभु उर में सदा,ध्यान करूँ दिन रात।
हर धड़कन में प्रीत की ,सदा रहे बरसात ।
पनघट पर घट ले खड़ी ,मृगतृष्णा की प्यास,
प्यास बुझाते आप जो,बहता भाव प्रपात ।


Wednesday, January 22, 2020

नहीं बदला

विजात छन्द
'नहीं बदला

नहीं बदला ,नहीं बदला,
विचारो क्या नहीं बदला ।

रही थी जो कभी अचला,
चली थी वो बनी चपला।
हुई क्यों आज बेचारी
रही क्या आज लाचारी।
समझते क्यों उसे अबला,
धरेगी रूप वो सबला ।
नहीं बदला ...
विचारो...

समय का चक्र है चलता ,
सदा ये सम कहाँ रहता ।
यहीं सुख दुख पला करता
इसे समझो ,यही छलता।
कभी पिछड़ा,कभी अगला,
नियम अब भी नहीं बदला।
नहीं बदला..
विचारो...

सदा क्यों मौत से डरना
यहीं जीना ,यहीं मरना ।
वतन की लाज है रखना
इसी पर आज मर मिटना।
रखे जज्बा रहे पगला
करें है वार अब दहला ।
नहीं बदला .
विचारो...

Tuesday, January 21, 2020

है सपने का घर

भूचालों की बुनियादों पर
है सपने का घर

सुख दुख तो आना जाना है
रहते क्यों डर डर कर
सिक्के के दो पहलू होते
जीते क्यों मर मरकर
पतझड़ बाद बहारें आती
चलने की हिम्मत कर
भूचालों की बुनियादों पर
है सपने का घर  ।

सरल नहीं है मंजिल पाना
करिये इस पर विचार
निष्ठा और समर्पण में ही
मिले जीवन का सार
आत्मविश्वास की ताकत से
नित्य अभ्यास तू कर
भूचालों की बुनियादों पर
है सपने का घर  ।

जो होना वो होकर रहता
कहे ये कर्म विधान
भाग्य का लेखा कहाँ टला ,
मिला कहाँ है निदान
आशाओं के दीप जला कर
मन में उजियारा भर
भूचालों की बुनियादों पर
है सपने का घर  ।


अनिता सुधीर

Monday, January 20, 2020

कुंडलिनी
गंगा

गंगा माँ का अवतरण,भागीरथी प्रयास।
शाप मुक्ति की कामना,तप किये कई मास।
तप किये कई मास,चली हिमनद से चंगा ।
मिटा धरा का त्रास  ,जटा से उतरीं गंगा ।

पौड़ी से गंगा चलीं,संगम हुआ प्रयाग ।
काशी गंगा घाट पर ,भाग्य सभी के जाग।
भाग्य सभी के जाग,चले कलकल ये दौड़ी ।
करती पाप विनाश, करे मन हर्षित पौड़ी ।

सागर में गंगा मिली,कपिल संत के धाम।
गंगासागर तीर्थ में ,सादर करें प्रणाम ।
सादर करें प्रणाम,सिक्त होता मन गागर।
मोक्ष प्राप्ति हो भाव,ज्ञान का बहता सागर।

निर्मल गंगा नीर से,बढ़ता पुण्य प्रताप।
रोगनाशिनी गंग को,रखें स्वच्छ हम आप।
रखें स्वच्छ हम आप,युगों से बहती अविरल।
औषधि से भरपूर,युगों तक रखिये निर्मल ।

©anita_sudhir

Friday, January 17, 2020

गुरु शिष्य

सदियों से प्रचलित रही ,गुरू शिष्य की रीति
भारत की पहचान है ,गौरवमयी  संस्कृति ।
आषाढी पूर्णिमा को ,गुरू पर्व का मान
श्रद्धा से मस्तक झुके ,चरणों में हो ध्यान ।
दूर करें मन का तमस,करें दुखों का नाश।
अध्यात्म की लौ जला ,उर में भरे प्रकाश।।
गुरू बिना मन नहि सधे,भरे ज्ञान भंडार।
मिले गुरू आशीष तो ,भवसागर से पार।।
संदीपनी ,वशिष्ठ गुरू , बारंबार प्रणाम ।
शिष्य रहे जिनके श्री कृष्ण और प्रभु राम।
गुरु द्रोणाचार्य को अँगूठा दिए एकलव्य
जग को बताया गुरु दक्षिणा का महत्व ।
आरुणि रात भर लेटे रहे खेत की मेड़ पर
गुरु धौम्य का आदेश  ले सिर माथे पर ।
अपनी संस्कृति का स्वयं कर रहे उपहास
गुरु शिष्य सम्बन्ध का होता जा रहा ह्रास।
पहले जैसी बात नहीं ,शिक्षा प्रणाली मे,
कमियां नहीं गिने बल्कि,सुधारे कार्यशैली ये ।
ट्यूशन लग रही अब दूसरी  तीसरी कक्षा से
जनक के पास समय नहीं ,समझे न शिक्षक से।
महंगी हो गयी पढ़ाई,बढ़ गये कोचिंग संस्थान
बन गयी मैकाले शिक्षा पद्धति महान ।
डिग्री सबके पास हुई ,पर ज्ञान नही मिलता।
सीमित संसाधन और रोजगार नही  मिलता ।
गुरु और शिष्य दोनों मर्यादा पहचान लें
वही सम्मान दिला ये परम्परा बचा लें ।


अनिता सुधीर




*वर्ष छन्द  वर्णिक
222   221   121*

कैसा झूठा है व्यवहार।
छीने दूजे के अधिकार।
रोटी की होती नित रार।
होते ही जाते व्यभिचार,

भूले बैठें आदर मान ।
भूले सारे नेक विधान।
मूँदे बैठे नैन कपाट
कैसे होगा ,प्रश्न विराट।

कैसे पायें रूप अपार।
सोचो कैसे हो उपकार ।
सोचें  ये ज्ञानी जन आज।
हो कैसे कल्याण समाज।

लेना ही होगा प्रतिकार ।
लायेगा ये कौन बहार ।
छोड़ोगे जो भोग विलास,
तो आयेगा भोर उजास ।

©anita_sudhir

Thursday, January 16, 2020

विद्या :- वर्ष छंद  (वर्णिक)
विषय :-व्यवहार
मापनी- 222 221 121
(मगण तगण जगण)
**
छीने दूजे के अधिकार,
रोटी की होती तकरार।
होते ही जाते व्यभिचार,
कैसा झूठा है व्यवहार।

भूले बैठें ये तहज़ीब ,
खेला है जो खेल अजीब ।
मूँदे बैठा नैन समाज ,
कैसे होगा पीर इलाज ।

लेना ही होगा प्रतिकार ,
सोचो कैसे हो उपकार ।
लायेगा ये कौन बहार ,
कैसे पायें रूप अपार।

सोचो ये आराम हराम,
पूरे होंगे काम तमाम ।
छोड़ोगे जो भोग विलास,
तो आयेगा भोर उजास ।

अनिता सुधीर

Wednesday, January 15, 2020

भार

दोहा मुक्तक

1)
ज्ञान नहीं लय शिल्प का,समझ न मात्रा भार ।
छन्द सृजन कैसे करें , नहीं शब्द भंडार।।
"सहित" सृजन है साधना,डूबे जो दिन रात,
अनुपम कृति साहित्य की ,तब लेती आकार ।।

2)
करते हो चरितार्थ क्यों,बैल मुझे आ मार।
वृक्ष काटते जा रहे ,जो जीवन आधार।
संतति इनको जानिये ,पूजें देव समान,
उत्तम पानी खाद से ,लें पालन का भार ।।
3)
संस्कृति का अब ह्रास है,हुई सभ्यता भार।
भूल गये संकल्प वो ,जो जीवन  आधार ।
नीति नियम से थामिये ,नैतिकता की डोर,
उन्नत जीवन का रहे ,कीर्ति पताका सार ।।
4)
भेद भाव ये किसलिए, बेटी समझे भार।
मात पिता के प्रेम पर ,दोनों का अधिकार।
कुरीतियों पर वार कर ,रचिये सभ्य समाज ,
बेटियों को शिक्षित करें,सृजन जगत आधार।।
5)
सेना सीमा पर खड़ी ,ले रक्षा का भार ।
सोते हम सब चैन से ,हँस कर सहती वार।
कफन तिरंगे का पहन ,रखा देश का मान,
व्यर्थ नहीं बलिदान हो,खायें शपथ हजार ।
6)
अंतहीन क्यों हो रहा ,इच्छाओं का भार ।
मृगतृष्णा की आस में ,भटक रहा संसार ।
बढ़ता गठरी भार ये ,जाना खाली हाथ ,
सतकर्मों की पोटली ,भवसागर से पार ।।

अनिता सुधीर
लखनऊ


























Tuesday, January 14, 2020


दोहा छन्द
**
मकर संक्रांति

संतति मङ्गल कामना,जननी करे अपार।
लड्डू तिल के बन रहे,सकट चौथ त्यौहार।।

मूँगफली ,गुड़ ,रेवड़ी,धधक रही अंगार ।
करें भाँगड़ा लोहड़ी, हुआ शीत पर वार ।।

मकर राशि दिनकर चले ,करें स्नान अरु दान।
उत्सव के इस देश में ,संस्कृति बड़ी महान ।।

खिचड़ी पोंगल लोहड़ी,अलग संक्रांति नाम।
नयी फसल तैयार है,खुशियां मिले तमाम ।

रंग बिरंगी उड़ रही ,अब पतंग हर ओर ।
मन पाखी बन उड़ रहा ,पकड़े दूजो छोर।।

जीवन झंझावात में ,मंझा रखिये थाम ।
संझा दीपक आरती ,कर्म करें निष्काम ।।

उड़ पतंग ऊंची चली ,मंझा को दें ढील।
मंझा झंझा से लड़े ,सदा रहे गतिशील।।

ऋतु परिवर्तन जानिये ,निकट बसन्त बहार।
पीली सरसों खेत में ,धरा करे श्रृंगार ।।


अनिता सुधीर

Monday, January 13, 2020

जीवन दर्शन
कुंडलिया
सिंहावलोकन विधा में प्रयास

आधा बरतन है भरा ,या आधा है रिक्त।
रिक्त देख मन रिक्त हो ,सिक्त देख मन सिक्त ।
सिक्त देख मन सिक्त ,करें विचार हम जैसे
जैसे होंगें भाव ,सदा फल होंगे वैसे ।
वैसे  हो अब कर्म ,नहीं हो कोई बाधा ।
बाधा होगी पार ,भरेगा  बरतन आधा ।

यात्रा जीवन की चली ,मिले मात्र दिन चार ।
'चार लोग 'के फेर में,रार मची थी रार ।
रार मची थी रार,वही मिलता जो बोये ।
बोये पेड़ बबूल,कहाँ से अमिया होये।
होये जग में प्रीत,बढ़े खुशियों की मात्रा ।
मात्रा जीवन सार,समझ कर पूरी यात्रा ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

Saturday, January 11, 2020

युवा दिवस 12थ जनवरी

मैं .......विवेकानंद बोल रहा हूँ..

मैं बदलता भारत देख रहा हूँ
मैं युवा भारत की आहट  सुन रहा  हूँ
मैं ये सोच आनंदित हो रहा हूँ  कि
लक्ष्य निर्धारित कर ,कर्म पथ पर चले तुम
मिले मार्ग मे शूल ,निडर बढ़ते चले तुम
सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर खड़े
सपनोँ को पूरा करने की ऊँची उड़ान भरे तुम ।

मुझे तुम पर पूरा विश्वास ,मगर
मैं कभी ये देख कांप जाता हूँ
जब तुम्हें नशे की गिरफ्त में पाता हूँ
नारी का अपमान सहन न कर पाता हूँ
भ्रष्टाचार में लिप्त तुम्हें देख नही पाता हूँ
अपशब्द देश के लिये सुन नही पाता हूँ
देश को जलते देख नहीं पा रहा हूँ
शिक्षण संस्थाओं की अवस्था पर घबरा जाता हूँ।

मैं  युवा भारत से आह्वान करता हूँ
सांस्कृतिक विरासत को सहेज आगे बढ़ो
चरित्र निर्माण,पौरुष में सतत लगे रहो
तुम्हारे नाम पर दिवस का नाम  हो
सत्कर्म करो ऐसे, जग मे अमर  रहो।
मैं ........विवेकानंद  बोल रहा ......
मेरी बात सुनो ...

©anita_sudhir

Friday, January 10, 2020



कुंडलिया

विनती
बालक हम नादान प्रभु, समझ न पायें मूल।
हाथ जोड़ विनती करें ,क्षमा करें सब भूल।
क्षमा करें सब भूल,घिरा कष्टों से जीवन ।
राह बिछे थे शूल,दिशा से भटका था मन ।
विनती करुँ दिन रात,तुम्हीं हो जग के पालक।
देना तुम आशीष ,तुम्हारे हैं हम बालक।

भावुक
सरिता भावों की बहे ,बहे नैन से नीर।
भावुक मन की वेदना,समझे दूजो पीर।
समझे दूजो पीर,व्यथा वो रो कर सहते ।
सहते थे दिन रात,दुखों को उनके हरते।
कहती 'अनु 'ये बात,बना लो जीवन मुदिता ।
भावुक मन की आस ,बहे अब सुख की सरिता।

धरती
माटी अपने खेत की,पूजें धरतीपुत्र ।
भारत का अभिमान ये,करते कर्म पवित्र ।
करते कर्म पवित्र ,कड़ा परिश्रम ये करते।
जाड़ा हो या धूप ,सदा खेतों में रहते।
सहें कठिन हालात,यही इनकी परिपाटी।
धरती का सम्मान , बुलाती अपनी माटी ।
**
मानव
मानव गुण की श्रेष्ठता,सदा रहे समभाव।
सुख दुख का कारण यही,आशाओं की नाव। आशाओं की नाव ,नहीं बस में इच्छाएं ।
करता रहा जुगाड़, समस्या मुख फैलाए।
बढ़ जाता जब लोभ ,तभी बनता वो दानव।
छोड़ लोभ अरु क्रोध ,बनो उत्तम गुण मानव ।

गागर
***
गागर में सागर भरे ,विद्वजनों के भाव,
भाव ,शब्द अरु लेखनी,करे दूर उर घाव।
करे दूर उर घाव ,तृषा मन की मिट पाये।
वंदन दोहाकार ,सृजन करते ही जाये ।
माँ वीणा आशीष,भरें भावों से सागर ।
श्रेष्ठ समाहित सीप ,छलकती इनकी गागर।

सरिता
सरिता सम स्त्री मानिये,अविरल रहा प्रवाह।
जीवनदात्री ये  रहीं, शूल सहे इस  राह ।
शूल सहे इस  राह, रही चंचल अविरामी ।
देतीं खुशी अपार ,सदा बन के पथगामी ।
जन्म मिलन दो ठौर,रहा नदिया अरु वनिता ।
रखना होगा मान,रहे ये निर्मल सरिता ।

Tuesday, January 7, 2020




जिजीविषा


क्यो पिघल रहा विश्वास
क्यो धूमिल हो रही आस
कैसा फैला ये तमस
चहुँ और है त्रास ही त्रास ।

कोने में सिसक रही कातरता से
मानवता जकड़ी गयी दानवता से
राह दुर्गम ,कंटको से है रुकावट
जन जन शिथिल हो गया थकावट से।

संघर्ष कर तू आत्मबल से
जिजीविषा को रख प्रबल
भोर की तू आस रख
सत्य मार्ग पर हो अटल ।

आंधियों मे भी जलता रहे
दीप आस की जलाए जा
मन का तमस दूर कर
उजियारा तू फैलाए जा ।

गीत
सरसी छन्द

एक डाल के सब पंछी हैं ,सबमें है कुछ खास।
किसी कमी पर कभी किसी का,मत करना उपहास।

सिक्के के दो पहलू होते , जैसा करें विचार,
पतझड़ बाद बहारें आतीं,ये जीवन का सार।
सुख दुख तो आना जाना है,मन क्यों करे उदास,
चार दिनों का जीवन बाकी ,करो हास परिहास।।
किसी कमी ...

सरल नहीं है मंजिल पाना ,ऐसा रखिये ध्यान,
निष्ठा और समर्पण करते ,मंजिल को आसान।
आत्मविश्वास की ताकत से,करें नित्य अभ्यास,
जो डरे नहीं  बाधाओं से ,वही रचे  इतिहास ।।
किसी कमी पर ...

साथ भला क्या ले जायेगा,निज कर्मों को छोड़,
अब अच्छे कर्मों से अपने,खाते में कुछ जोड़ ।
परोपकार में तन लगा दें,भूखे को दे ग्रास।
सतकर्मों से मिट पायेगा,धरती माँ का  त्रास।।
किसी कमी ...

जो होना वो होकर रहता ,कहता कर्म विधान,
डर डर के जीवन क्या जीना ,रखिये स्व अभिमान।
आशाओं का दीप जला के,मन में करें उजास,
भाग्य का लेखा कहाँ टला , राम गये बनवास।।
किसी कमी...

एक डाल के सब पंछी हैं ,सबमें है कुछ खास।
किसी कमी पर कभी किसी का,मत करना उपहास।

©anita_sudhir

Sunday, January 5, 2020

दोहा छन्द गीतिका
नैतिक शिक्षा

कच्ची मिट्टी के घड़े,सोच समझ कर ढाल,
उत्तम बचपन जो गढ़े,नैतिक होगा काल।

रहे गणित विज्ञान सँग,नैतिक शिक्षा पाठ,
मूल तत्व को जानिये,चलिये उत्तम चाल ।

उन्नत जीवन का रहे , नैतिकता आधार ,
नैतिक मूल्यों से मिटे ,गद्दारी का जाल ।।

नैतिकता मन में रखें ,करें नारि सम्मान ,
विकृत मानसिक जन रहें ,ज्यों लग्घड़ की खाल ।

महापुरुष की जीवनी ,मन में भरती जोश,
नैतिकता की सीख दें,भारत माँ के लाल ।

कीमत इसकी जानिये ,नैतिकता अनमोल,
अंक विषय का जोड़िये ,करें इसे तत्काल।

देशप्रेम ज्वाला जले ,श्रेष्ठ नागरिक भाव ,
हवन कुंड की अग्नि बन ,जीवन समिधा डाल ।


अनिता सुधीर

पिरामिड
नव्य/नूतन

हो
स्तुत्य
कर्तव्य!
वर्ष नव्य
मार्ग हो सत्य
आचरण दिव्य !
सफलता हो भव्य ।
2
लें
प्रण
नूतन !
हो संकल्प
यही विकल्प!
यत्न नहीं अल्प
जीवन खिले पुष्प।

Saturday, January 4, 2020

हंसमाला छंद
सगण,रगण,गुरु
 ११२,२१२,२

वह बातें पुरानी
ऋतु थी वो सुहानी।
ढलती यामिनी में
खिलती चाँदनी में ।
खनकी चूड़ियाँ थीं
बजती झांझरे थीं।
महकी टेसुओं सी
चहकी कोयलों सी।

फिर दोनों मिले थे
सपने क्या सजे थे ।
नभ में वो उड़े थे
धरती से जुड़े थे ।
सच वो जानते थे
घर की मानते थे ।
जकड़ी बेड़ियां थीं
पिछड़ी रीतियाँ थी।

ठिठकी रात है क्यों
ठहरी बात है क्यों ।
अब ये दूरियां हैं
कि परेशानियाँ है ।
कहता क्या जमाना
इसका है फ़साना ।
बिसरा दो पुराना
अब गाओ तराना ।।

अनिता सुधीर