कुंडलिया
1)
रोटी पर कविता लिखे,कहाँ मिटे है भूख।
दो रोटी की आस में ,आंतें जाती सूख ।।
आंतें जाती सूख ,उदर पानी से भरते।
मिलती कवि को वाह,तड़प कर भूखे मरते।।
काल बड़ा है क्रूर,रही किस्मत भी खोटी ।
भरा रहे अब थाल ,लिखे कवि ऐसी रोटी ।।
2)
रोटी माँ के हाथ की,रखे स्वाद भरपूर।
दो रोटी के फेर में ,हुए उन्हीं से दूर ।।
हुये उन्हीं से दूर ,नहीं अब दालें गलती।
मिले वही फिर स्वाद ,कमी अब माँ की खलती।।
नहीं रही वो डाँट ,नीर से रोटी घोटी ।
भरे नयन में नीर ,याद आती वो रोटी ।।
3)
'रोटी बैठा तोड़ता' ,करे नाम बदनाम ।
महत्व रोटी का रहा,करना पड़ता काम।।
करना पड़ता काम,सभी आलस को छोड़ो।
मिले नहीं बिन दाम,मुफ्त मत इसको तोड़ो।।
रहा परिश्रम सार ,जोर हो एड़ी चोटी ।
तृप्त हुआ उर भाव ,कमाई जब खुद रोटी।।
4)
माया ठगिनी डोलती,बदल बदल कर रूप।
नाच नचाती ये रही ,रहे रंक या भूप ।।
रहे रंक या भूप ,लगी तृष्णा जो मन की।
बिक जाता ईमान ,मिटे पर भूख न इनकी।।
छीन रहे अधिकार ,तिजोरी भर भर खाया ।
बुझी नहीं है प्यास,रही रोटी की माया ।।
अनिता सुधीर आख्या
सार्थक कुण्डलियाँ।
ReplyDeleteजी आप की स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (19 -5 -2020 ) को "गले न मिलना ईद" (चर्चा अंक 3706) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
जी आप की स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
Deleteसटीक और प्रभावी सृजन
ReplyDeleteपढ़े-- लौट रहैं हैं अपने गांव
जी आप की स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
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