Sunday, May 10, 2020

माँ

एक प्रयास किया है
शायद सबके मन की बात हो


*मैं* ,*मेरी माँ* ,*मेरे बच्चे*


स्व सुत सुता निज की मातु बने
हृदय झूम नभ छू आये।

उंगली थाम कर चलना सीखा
कदम कदम पर डाँट पड़ी
हाथ पकड़ संतान चलाये
निर्देशों की लगी झड़ी
स्वर्ग मिला है मातु गोद में
बच्चे अब भान करायें
स्व सुत सुता निज की मातु बने
हृदय झूम नभ छू आये।

पीर मातु ने सदा छुपाई
कितने कष्ट सहे थे तब
व्यथा झेल कर कष्ट छुपाते
वही करें औलादें अब
लिटा गोद में सिर सहला के
थपकी देकर लोरी गाये
स्व सुत सुता निज की मातु बने
हृदय झूम नभ छू आये।

मेरी माँ मेरे अंदर है
सदा रही उनके जैसी
चक्र समय का चलता जाता
संतति राह चले वैसी
मातु भाव में संसार निहित
शब्द नहीं इसको पाये
स्व सुत सुता निज की मातु बने
हृदय झूम नभ छू आये।

अनिता सुधीर आख्या

8 comments:

  1. मातृ दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11 -5 -2020 ) को " ईश्वर का साक्षात रूप है माँ " (चर्चा अंक-3699) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा



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    Replies
    1. जी हार्दिक आभार

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    2. क्षमा चाहती हूँ आमंत्रण में मैंने दिनांक गलत लिख दिया हैं ,आज 12 -5 -2020 की प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत हैं। असुविधा के लिए खेद हैं।

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  3. पीर मातु ने सदा छुपाई
    कितने कष्ट सहे थे तब
    व्यथा झेल कर कष्ट छुपाते
    वही करें औलादें अब
    लिटा गोद में सिर सहला के
    थपकी देकर लोरी गाये
    स्व सुत सुता निज की मातु बने
    हृदय झूम नभ छू आये।... बहुत सुंदर अनीता सुधर जी ...

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  4. बहुत ही खूबसूरत रचना ,माँ ,माँ होती है ,सच्ची ,अच्छी,अनमोल

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