मुक्तक
मॉपनी
1222 1222 1222 1222
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1)
वंदना
विराजो शारदे माँ तुम,नया आसन बिछाते हैं ।
तुम्हारी ही कृपा से हम,विधा नित सीख पाते हैं।
सजाते भाव के मोती,चढ़ाते शब्द की माला,
तुम्हारी ही कृपा से हम,अनोखे पद रचाते हैं ।
2)
मुहब्बत
लगाते आग जो तुम हो,बुझाना भूल जाते हो ,
जमाने से छिपाते हो ,बताना भूल जाते हो ,
मुहब्बत को इशारे से ,जताया आप ने होता ,
रही फितरत तुम्हारी ये ,मनाना भूल जाते हो ।
3)
मुहब्बत के तरानों में ,तरन्नुम साज बनती है,
कभी दिल गुनगुनाता है,गजल अल्फाज बनती है।
तराने आशिकी गाते ,निगाहों से जताना है,
पहेली इश्क़ कब सुलझी,यही आवाज बनती है।।
4)
मित्रता
न हमको सांझ की चिंता,न हमको रात का डर है,
मिले जो तुम मुझे मित्रों, न हमको घात का डर है,
पलों को जी लिया करते,ठहर जाये यहीं जीवन,
रहे बैचैन क्यों अब हम ,मुझे किस बात का डर है।
अनिता सुधीर आख्या
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर मुक्तावली।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 25 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
ReplyDeleteसभी मुक्तक शानदार👌👌👌👌
ReplyDeleteसभी मुक्तक बहुत ही सुंदर है ।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteशानदार सृजन सखी ,मोहक मुक्तक।
ReplyDeleteआभार सखी
Deleteसुन्दर मुक्तक हिं सभी ... बहर में सजे ...
ReplyDeleteजी सादर अभिवादन
Deleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteबधाई
जी हार्दिक आभार
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