दर्पण को आईना दिखाने का प्रयास किया है
दर्पण
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दर्पण, तू लोगों को
आईना दिखाता है
बड़ा अभिमान है तुम्हें
अपने पर ,
कि तू सच दिखाता है।
आज तुम्हे दर्पण,
दर्पण दिखाते हैं!
क्या अस्तित्व तुम्हारा टूट
बिखर नहीं जाएगा
जब तू उजाले का संग
नहीं पाएगा
माना तू माध्यम आत्मदर्शन का
पर आत्मबोध तू कैसे करा पाएगा
बिंब जो दिखाता है
वह आभासी और पीछे बनाता है
दायें को बायें
करना तेरी फितरत है
और फिर तू इतराता है
कि तू सच बताता है ।
माना तुम हमारे बड़े काम के ,
समतल हो या वक्र लिए
पर प्रकाश पुंज के बिना
तेरा कोई अस्तित्व नहीं ।
दर्पण को दर्पण दिखलाना
मन्तव्य नहीं,
लक्ष्य है आत्मशक्ति
के प्रकाश पुंज से
गंतव्य तक जाना ।
अनिता सुधीर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 22 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२३-०५-२०२०) को 'बादल से विनती' (चर्चा अंक-३७१०) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
जी हार्दिक आभार
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता |ब्लॉग पर आने हेतु हार्दिक आभार |
ReplyDeleteलक्ष्य है आत्मशक्ति
ReplyDeleteके प्रकाश पुंज से
गंतव्य तक जाना ।
- What a lovely thing to say, and really deep!
ये पंक्तियाँ अपने आप में काफी हैं!
जी आप की स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
Deleteदर्पण को दर्पण दिखलाना
ReplyDeleteसबके बस की बात नहीं।
--
अच्छी रचना।
जी आप की स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteधन्यवाद सखी
Deleteआ अनीता सुधीर जी, आपने सचमुच दर्पण को दर्पण दिकह दिया। दर्पण में प्रतिबिम्ब तभी भासित होता है, जब प्रकाश हो। सही दृष्टि!--ब्रजेंद्रनाथ
ReplyDeleteजी आप की स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
Deleteमाना तू माध्यम आत्मदर्शन का
ReplyDeleteपर आत्मबोध तू कैसे करा पाएगा
बिंब जो दिखाता है
वह आभासी और पीछे बनाता है
दायें को बायें
करना तेरी फितरत है
और फिर तू इतराता है
कि तू सच बताता है ।
बहुत खूब...सुन्दर सार्थक
लाजवाब सृजन
वाह!!!