काफिया आर
रदीफ़ कर
2122 2122 2122 212
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कब सफर पूरा हुआ है जिन्दगी का हार कर ।
मंजिलों की शर्त है बस मुश्किलों को पार कर।।
साथ मिलता जब गमों का वो मजा कुछ और है
कर सुगम तू राह उनसे हाथ अब दो चार कर ।।
मुश्किलों के दौर में बस हार कर मत बैठना
आसमां को नाप लेंगे आज ये इकरार कर ।।
वक़्त की इन आँधियों में क्या बिखरना है सही
दीप जलता ही रहेगा इस हवा से प्यार कर।।
आशियाने आरजू के हैं वहीं पर टूटते ।
बेवजह यूँ हर किसी पर मत कभी इतबार कर।।
ख्वाहिशों के आसमां में जब सितारे टाँकना
हौसला रख चाँदनी का जिंदगी उजियार कर ।।
अनिता सुधीर आख्या
अच्छे अशआर।
ReplyDeleteमुकम्मल ग़ज़ल।
जी शुक्रिया
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