बाली उमरिया देखिए, लगा इश्क़ का रोग
साथ चाहिए छोकरी,नहीं नौकरी योग ।।
रखते खाली जेब हैं,कैसे दें उपहार।
प्रेम दिवस भी आ गया,चढ़ता तेज बुखार।।
दिया नहीं उपहार जो,कहीं न जाये रूठ।
रोजगार तो है नहीं,उससे बोला झूठ ।।
स्वप्न दिखाए थे उसे,ले आऊँगा चाँद ।
अब भीगी बिल्ली बने,छुप जाऊँ क्या माँद।।
साथ छोड़ते दोस्त भी,देते नहीं उधार ।
जुगत भिड़ानी कौन सी,आता नहीं विचार।।
भोली भाली माँ रही,पूछे नहीं सवाल ।
बात बात पर रार जो,पापा करते बवाल।।
नहीं दिया उपहार जो,साथ गया यदि छूट।
लिए अस्त्र तब चल पड़े,करनी है कुछ लूट।
मातु पिता का मान अब ,सरेआम नीलाम।
आये ऐसे दिन नहीं,थामो इश्क़ लगाम ।।
रोजगार अरु इश्क़ में,कमोबेश ये तथ्य ।
दोनों का ही साथ हो ,जीवन सुंदर कथ्य ।।
अनिता सुधीर आख्या
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद सखी
Deleteजी हार्दिक आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteकिसी योग्य दोहाकार को गुरु बना लीजिए।
आपके दोहों में जो कमियाँ हैं फिर उनका निवारण होता रहेगा।
आ0 आप कृप्या मार्गदर्शन करें ,आपके सानिध्य में सीख सकूंगी कृपया अवश्य बताएं ,सादर
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