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तुम्हारी ख्वाहिशों को आसमाँ कोई नहीं देगा।
बढ़ी जब प्यास होगी तो कुआँ कोई नहीं देगा।।
लिया करता जमाना ये कभी जब इम्तिहाँ मेरा,
सहारा मतलबी जग में यहाँ कोई नहीं देगा ।
खड़ी की मंजिलें ऊँची टिकी जो झूठ पर रहती
यहाँ सच के लिए तो अब बयाँ कोई नहीं देगा ।।
चली अब नफरतों की आंधियाँ हर ओर ही देखो
रहें जो दहशतों में सब जुबाँ कोई नहीं देगा ।।
डसा करते रहे हरदम भरोसा हम किये जिन पर
कभी सुख चैन से जीने यहाँ कोई नहीं देगा ।।
तराशे पत्थरों को अब उठाना कौन चाहे है
गिराने पर लगे सब आसमाँ कोई नहीं देगा।।
अनिता सुधीर
©anita_sudhir
तुम्हारी ख्वाहिशों को आसमाँ कोई नहीं देगा।
बढ़ी जब प्यास होगी तो कुआँ कोई नहीं देगा।।
लिया करता जमाना ये कभी जब इम्तिहाँ मेरा,
सहारा मतलबी जग में यहाँ कोई नहीं देगा ।
खड़ी की मंजिलें ऊँची टिकी जो झूठ पर रहती
यहाँ सच के लिए तो अब बयाँ कोई नहीं देगा ।।
चली अब नफरतों की आंधियाँ हर ओर ही देखो
रहें जो दहशतों में सब जुबाँ कोई नहीं देगा ।।
डसा करते रहे हरदम भरोसा हम किये जिन पर
कभी सुख चैन से जीने यहाँ कोई नहीं देगा ।।
तराशे पत्थरों को अब उठाना कौन चाहे है
गिराने पर लगे सब आसमाँ कोई नहीं देगा।।
अनिता सुधीर
©anita_sudhir
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 16 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteJee मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
Deleteडसा करते रहे हरदम भरोसा हम किये जिन पर
ReplyDeleteकभी सुख चैन से जीने यहाँ कोई नहीं देगा ।।
बहुत खूब
सुन्दर
ReplyDeleteJee हार्दिक आभार
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteबहुत खूब
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