दोहा गजल
****
बीत रहा इस वर्ष का,दीपों का त्योहार।
वायु प्रदूषण बढ़ रहा,जन मानस बीमार ।।
दोष पराली पर लगे ,कारण सँग कुछ और।
जड़ तक पहुँचे ही नहीं ,कैसे हो उपचार ।।
बिन मानक क्यों चल रहे ,ढाबे अरु उद्योग ।
सँख्या वाहन की बढ़ी ,इस पर करो विचार।।
कचरे के पर्वत खड़े ,सुलगे उसमें आग ।
कागज पर बनते नियम,सरकारें लाचार ।।
आतिशबाजी बंद का,बना नियम कानून।
उसकी उड़ती धज्जियां,कैसे करें सुधार।।
कोरोना के साथ अब,बढ़ा प्रदूषण खूब
श्वसन तंत्र बाधित हुये ,शुद्ध करें आचार ।
व्यथा यही प्रतिवर्ष की ,मनुज हुआ बेहाल।
सुधरे जब पर्यावरण ,तब सुखमय संसार ।।
अनिता सुधीर आख्या
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 16 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआ0 मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteसुन्दर लेखन
ReplyDeleteसादर अभिवादन आ0
Deleteवाह! एकदम ठीक कहा आपने। दोष पराली के सर मढ़ा जा रहा है, पर उन सब बातों पर चिंतन होना चाहिए जो आपने काही हैं।
ReplyDeleteआ0 रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
Deleteसुंदर सृजन !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteहार्दिक धन्यवाद आ0
ReplyDeleteउम्दा अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteबहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteदोष पराली पर लगे ,कारण सँग कुछ और।
जड़ तक पहुँचे ही नहीं ,कैसे हो उपचार ।।
वाह !