Sunday, November 15, 2020

चिंतन


दोहा गजल

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बीत रहा इस वर्ष का,दीपों का त्योहार।
वायु प्रदूषण बढ़ रहा,जन मानस बीमार ।।

दोष पराली पर लगे ,कारण सँग कुछ और।
जड़ तक पहुँचे ही नहीं ,कैसे हो उपचार ।।

बिन मानक क्यों चल रहे ,ढाबे अरु उद्योग ।
सँख्या वाहन की बढ़ी ,इस पर करो विचार।।

कचरे के पर्वत खड़े ,सुलगे उसमें आग ।
कागज पर बनते नियम,सरकारें लाचार ।।

आतिशबाजी बंद का,बना नियम कानून।
उसकी उड़ती धज्जियां,कैसे करें सुधार।।

कोरोना के साथ अब,बढ़ा प्रदूषण खूब
श्वसन तंत्र बाधित हुये ,शुद्ध करें आचार ।

व्यथा यही प्रतिवर्ष की ,मनुज हुआ बेहाल।
सुधरे जब पर्यावरण ,तब सुखमय संसार ।।

अनिता सुधीर आख्या

14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 16 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आ0 मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. वाह! एकदम ठीक कहा आपने। दोष पराली के सर मढ़ा जा रहा है, पर उन सब बातों पर चिंतन होना चाहिए जो आपने काही हैं।

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    1. आ0 रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार

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  4. हार्दिक धन्यवाद आ0

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  5. उम्दा अभिव्यक्ति ।

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  6. बहुत ही सुंदर सृजन।
    दोष पराली पर लगे ,कारण सँग कुछ और।
    जड़ तक पहुँचे ही नहीं ,कैसे हो उपचार ।।
    वाह !

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