#छल धोखा
मानवता लाचार अब,आया कैसा काल।
रिश्तों में धोखा मिला,फैला भ्रम का जाल।।
धोखा अपनों से मिला ,कैसे हो विश्वास।
फरेबियों से जग भरा, टूट गयी सब आस ।।
वो धोखा खाता नहीं,जाने जो अधिकार।
रहे सजग जो आज कल,करे शुद्ध व्यापार।।
किस्मत धोखा दे रही,कहें मूर्ख यह बात।
नीति नियम से कार्य कर,सुधरेंगे हालात।।
झूठ कपट जब छूटता,निखरे जीवन रूप ।
नैतिकता आधार से,पाएं रूप अनूप ।।
अनिता सुधीर आख्या
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 24 नवंबर नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-11-2020) को "कैसा जीवन जंजाल प्रिये" (चर्चा अंक- 3896) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जी आ0 हार्दिक आभार
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteजी धन्यवाद आ0
Deleteसुन्दर अर्थपूर्ण रचना
ReplyDeleteजी सादर आभार
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर यथार्थ को इंगित करता सृजन।
ReplyDeleteजी धन्यवाद
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