सत्य डिगता रहा आज इंसान का।
कौड़ियों में बिका धर्म ईमान का।।
झूठ ओढ़े लबादा चला जा रहा,
प्रश्न उठता वही मान अपमान का ।।
क्यों मचाते रहे रार हर बात पर,
भूलते लक्ष्य क्यों राष्ट्र उत्थान का।।
बाँध टूटा रहा धैर्य का इस तरह,
भूलते मान भी वो अनुष्ठान का।।
आसरा जो दिये मुश्किलों में सदा,
नाम होता गुणों के सकल गान का।।
साधना जो करे श्रेष्ठतम की सदा,
सभ्यता में छुपा राज पहचान का ।।
अनिता सुधीर आख्या
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteजी हार्दिक आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सशक्त रचना।
ReplyDeleteराष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।
जी आ0 आत्मिक आभार
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