Friday, January 29, 2021

गजल


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जिंदगी की मुश्किलों से मशविरा ले जाऊँगा।
इस गुलिस्तां के अदब को मैं निभा ले जाऊँगा।।

क्यों मुहब्बत की हवा भी अब बगावत कर रही
नफ़रतों की आँधियों को मैं बहा ले जाऊँगा।।

अब तलक मज़मून ख़त का याद हमने है रखा
कह रहा था आपको इस मर्तबा ले जाऊँगा।।

दौड़ में है वक़्त ज़ाया,सैर जो अब साथ में हो
इस शहर की शाम ये बाद-ए-सबा ले जाऊँगा l

बन रही अब है नजाकत खुद ही देखो इक गजल
आपके इस इत्र का फिर काफिया ले जाऊँगा।।

अनिता सुधीर आख्या

13 comments:

  1. जिंदगी की मुश्किलों से मशविरा ले जाऊँगा।
    इस गुलिस्तां के अदब को मैं निभा ले जाऊँगा
    बहुत बहुत सुन्दर गजल

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  2. क्यों मुहब्बत की हवा भी अब बगावत कर रही
    नफ़रतों की आँधियों को मैं बहा ले जाऊँगा।।
    .....बहुत ही प्रभावशाली पंक्तियाँ। सुन्दर व सराहनीय गजल।।।।।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (31-01-2021) को   "कंकड़ देते कष्ट"    (चर्चा अंक- 3963)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  4. अब तलक मज़मून ख़त का याद हमने है रखा
    कह रहा था आपको इस मर्तबा ले जाऊँगा।।
    लाजवाब ग़ज़ल |बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें आपको

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना सखी

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  6. सुन्दर प्रस्तुति

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  7. लाजवाब और भावपूर्ण सृजन ।

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