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मरुथल में
एक फूल खिला
कैक्टस का ,
तपते रेगिस्तान में
दूर दूर तक रेत ही रेत ,
वहाँ खिल कर देता ये संदेश
विपरीत स्थितियों में
कैसे रह सकते शेष !
फूल खिला तो सबने देखा ,
पौधे के बारे में किसने सोचा !
स्वयं को ढाल लिया
विपरीत के अनुरुप
अस्तित्व को बदला कांटो में
संग्रहित कर सके जीवन जल
और फिर खिल सका पुष्प ।
ऐसे ही नही खिलता
मानव बगिया मे कोई पुष्प,
माली को ढलना पड़ता है,
परिस्थिति के अनुरूप ।
अनिता सुधीर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 19 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआ0 रचना को स्थान देने के।लिए हार्दिक आभार
Deleteसशक्त रचना।
ReplyDeleteजी आ0 हार्दिक आभार
Deleteफूल खिला तो सबने देखा ,
ReplyDeleteपौधे के बारे में किसने सोचा !
इस यथार्थ को कविता में बख़ूबी पिरोया है आपने अनिता जी।
साधुवाद 🙏
जी आपके प्रोत्साहन के।लिए हार्दिक आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
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