धुंध
उष्णता की कमी
अवशोषित कर नमी
रगों में सिहरन का
एहसास दिलाये
दृश्यता का ह्रास कराए।
सफर को कठिन बना
ये धुंध चहुँ दिशा फैलती जाती है
संयम से सजग हो
निकट धुंध के जाओ..
और भीतर तक जाओ
धुंध ने सूरज नहीं निगला है
सूरज की उष्णता निगल
लेगी धुंध को ।
सामाजिक राजनीतिक
परिदृश्य भी
त्रास से
धुंधलाता जा रहा
रिश्तों की धरातल पर
स्वार्थ का कोहरा छा रहा
संबंधों की कम हो रही उष्णता
अविश्वास द्वेष की बढ़ रही आद्रता
कड़वाहट बन सिहरन दे रही ।
विश्वास ,प्रेम की किरणें
लिए अंदर जाते जाओ
दूर से देखने पर
सब धुंधला है
पास आते जाओगे
दृश्यता बढ़ती जायेगी
तस्वीर साफ नजर आएगी।
अनिता सुधीर
बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteविश्वास ,प्रेम की किरणें
ReplyDeleteलिए अंदर जाते जाओ
दूर से देखने पर
सब धुंधला है
पास आते जाओगे
दृश्यता बढ़ती जायेगी
तस्वीर साफ नजर आएगी।
बिलकुल सही कहा है आपने। रिश्तों व मानसिकताओं पर जमी धुंध को हटाना ही समस्त समस्याओं का निराकरण है।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया