भानुमती का खोल पिटारा
बाहर आया जिन्न
नचा रहे हैं बड़े मदारी
नाचें छम छम लोग
तर्क पहनता नूतन चोला
कहता उत्तम योग
वायुयान में बैठ विपक्षी
आज हुए हैं खिन्न।।
बाहर आया जिन्न
दाल गलाए जनता कैसे
नायलॉन का मेल
टुकुर टुकुर वो बीमा देखे
रहे आँकड़े खेल
सोच रहे हैं अमुक फलाने
स्वप्न हुए अब छिन्न।।
बाहर आया जिन्न
अर्थ पड़ा बीमार कभी से
कबसे रहा कराह
बाजार उछलता जोरों से
लाया नया उछाह
सत्य झूठ आपस में लड़ते
बुद्धि रखें हैं भिन्न।।
बाहर आया जिन्न
अनिता सुधीर आख्या
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 02 फरवरी को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteबहुत खूब 🌹🙏🌹
ReplyDeleteआत्मिक आभार आ0
Deleteअर्थ पड़ा बीमार कभी से
ReplyDeleteकबसे रहा कराह
बाजार उछलता जोरों से
लाया नया उछाह
सत्य झूठ आपस में लड़ते
बुद्धि रखें हैं भिन्न।।
बेहतरीन...
बहुत ही सुन्दर समसामयिक नवगीत सखी
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteमेरी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति!बजट को कविता का विषय बनाना बड़ी बात हौ--ब्रजेंद्रनाथ
ReplyDeleteआ0 हार्दिक आभार
Deleteवाह!सखी बहुत खूब कसा है आपने आना बाना।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।