तपती धरती सम जीवन में,आस लगी जलधार की।
अंतर्मन को शीतल करने,वर्षा हो अब प्यार की।।
पंचतत्त्व से बना शरीरा,काम क्रोध में लिप्त है।
मार्ग प्रदर्शक पथ दिखला दो,प्रभु से एकाकार की।।
अपनी संस्कृति मानव भूला,भूल गया संकल्प को।
पालन हो अब सदाचार का,बातें हों संस्कार की।।
श्रेस्ठ जनम मानव का मिलता,बुद्धि सदा सत्मार्ग हो।
पांच इंद्रियों को जो साधे, नींव पड़े व्यवहार की।।
ज्ञानी जन अभिमान करें जब,बढ़ा रहें संताप वो
छोड़ अहम को लक्ष्य रखें ये,सकल जगत उद्धार की।
अनिता सुधीर आख्या
सार्थक शिक्षा देती रचना ।
ReplyDeleteज्ञानी जन अभिमान करें जब,बढ़ा रहें संताप वो
छोड़ अहम को लक्ष्य रखें ये,सकल जगत उद्धार की।
बहुत सुंदर
जी हार्दिक आभार
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 11 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार आ0
Deleteसार्थक लेखन, सुन्दर गीतिका।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत सुंदर भावों वाली सद्गगुणों का गुणगान करता अभिनव सृजन।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार सखी
Deleteसकल जगत उद्धार की भावनाओं के मोतियों से पोई मधुर रचना.
ReplyDeleteअभिनंदन.
जी हार्दिक आभार आ0
Deleteसुन्दर रचना।।।।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार आ0
Deleteजी हार्दिक आभार आ0
ReplyDeleteसुन्दर लेखन
ReplyDeleteचलो उठो, बनो विजयी हार ना मानो तुम