नवगीत
गलबहियां जो कर रहे
करते वही विरोध
दूजे सर पर ठीकरा
फोड़ रहें हैं लोग
सिसक रहा कर्तव्य भी
खाकर छप्पन भोग
देख विवश है फिर जगत
बुद्धि धरे कब बोध।।
खेल खिलाड़ी खेलते
मतपत्रों की भीड़
पाप बढ़ा कर कुंभ भी
छीने दूजे नीड़
औषधि अब मजबूर है
ढूँढ़ रहीं वो शोध।।
तांडव करती मौत जब
रुदन हुआ अब मौन
बिलख रहे परिवार फिर
काँधा देगा कौन
पुष्प हृदय चीत्कारता
शूल बना ये क्रोध।।
अनिता सुधीर आख्या
बेहतरीन रचना सखी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteसमसामयिक रचना ... सब जानते बुझाते लापरवाही करने से बाज़ नहीं आ रहे लोग .
ReplyDeleteजी सत्य कहा
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDelete--
श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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मित्रों पिछले तीन दिनों से मेरी तबियत ठीक नहीं है।
खुुद को कमरे में कैद कर रखा है।
क्या हो गया आ0
Deleteआप शीघ्र ही स्वस्थ हों