उल्लाला छन्द
*नदी*
भूतल पर जलधार का,स्त्रोत झील हिमनद रहे।
सरिता तटिनी शैलजा,नदी नद्य इसको कहे।।
नदियाँ जीवन दायिनी,जल जीवन आधार है।
मातु सरिस सब पूजते,ये संस्कृति का सार है।।
कहीं जन्म ले बह चली,नीर जलधि में भर रही।
विकसित होती सभ्यता,लालन पालन कर रही।।
रूप सदानीरा रहे,या बरसाती रूप हो।
अविरल अविरामी चलें,भरा धरा का कूप हो।।
*उत्तर प्रदेश की नदी*
धार्मिक महत्व को रखें,उत्तर प्रदेश की नदी।
ग्रंथों में गाथा लिखे ,बीत गयी कितनी सदी।।
गंगा यमुना गोमती,नदी प्रमुख है शारदा ।
चम्बल वरुणा घाघरा,सभी मिटाती आपदा।।
*गंगा*
प्रमुख नदी है देश की,गोमुख उद्गम जानिए।
पंच प्रयागों से बनीं,पावन गंगा मानिए।।
आकर फिर ऋषिकेश में,चलतीं हरि के द्वार अब।
गढ़मुक्तेश्वर कानपुर,चलीं इलाहाबाद तब।।
यमुना से संगम किये,स्वागत काशी घाट में।
मिले मोक्ष का द्वार फिर,भव बंधन की काट में।।
खाड़ी है बंगाल की,सुंदरवन डेल्टा रहा।
कपिल संत का धाम है,तीर्थ गंग सागर कहा।।
देवनदी शुभ गंग को,रखें स्वच्छ हम आप सब।
औषधि गुण भंडार से,करना है उपचार अब।।
*यमुना*
नदी सहायक गंग की,व्रज की यमुना जानिए।
उद्गम यमुनोत्री रहा,संगम गंगा मानिए ।
सूर्य देव की नंदिनी,मृत्यु देव् यम भ्रात हैं।
कालिंदी तन मन बसीं ,व्रजवासी की मातु हैं।।
दिल्ली मथुरा आगरा,नगरों को पावन किया ।
क्षेत्र इटावा कालपी,जल जीवन इनको दिया।।
नहीं प्रदूषित कीजिये,ये कृषि का आधार है।
विकसित जल परियोजना,औद्योगिक विस्तार है।।
वल्लभ मार्गी लिख रहे,यमुना के गुणगान अब ।
घर घर गूँजे गीत फिर, गाथा नदी महान अब।।
*गोमती*
वशिष्ठ महर्षि की सुता, वेद पुराणों ने कहा।
पापनाशिनी गोमती,मूल तत्व आस्था रहा।।
उद्गम पीलीभीत में,कैथी में गंगा मिली।
कितने कंटक मार्ग में,अविरल अविरामी चली।।
रावण वध का पाप था,स्नान किये प्रभु राम तब।
मुक्ति मिली थी पाप से,धनुष किये थे शुद्ध जब।।
मान *धोपाप* का बड़ा ,गंग दशहरा जानिए
स्न्नान ध्यान करिये यहाँ,शुभ फलदायक मानिए।।
*रामगंगा*
नदी सहायक गंग की,नाम रामगंगा कहे।
गैरसैण तहसील में,दूधातोली से बहे।।
चली कुमायूँ क्षेत्र से,दक्षिण पश्चिम ओर अब।
खड़ोगार आकर मिली,दूनागिरि के छोर तब।।
देवगाड़ से नीर ले,जिम कार्बट उद्यान में।
जिला बिजनौर से चली,पहुँची फिर मैदान में।।
बाँध नदी पर बन गया,पनबिजली उत्पाद है।
खोह नदी संगम हुआ,जिला मुरादाबाद है।।
आकर के कन्नौज में,नदी गंग से आ मिली।
जलविद्युत परियोजना,से सिंचाई कर चली।।
*शारदा*
नदी महाकाली कहें,मैदानों में शारदा।
कालापानी स्थान से,चली मिटाने आपदा।।
मंदिर काली मातु का,लिपू लीख दर्रा रहा।
देवि नाम पर नाम रख,फिर काली गंगा कहा।।
हिन्द और नेपाल की,सीमा चिन्हित कर रही।
बाँध टनकपुर योजना,जल सिंचाई भर रही।।
नया नाम सरयू पड़ा,बहराइच में लोग अब ।
बलिया में गंगा मिली,उत्तम फल का भोग अब।।
बहराइच में नाम अब ,सरिता सरयू जानते।
बलिया में गंगा मिली,द्वार मोक्ष का मानते ।।
*सरयू*
वेदों में उल्लेख है,नदिया ये प्राचीन है।
नगर प्रभो का है बसा,सभी भक्ति में लीन हैं।।
बहराइच से नाम ले,रामप्रिया सरयू कहे ।
मोक्षदायिनी ये नदी,नगर अयोध्या में बहे।।
पतित पावनी घाघरा,इसका दूजा नाम है।
प्रभो विष्णु के नेत्र से,निकला पावन धाम है।।
पाप मिटाती ये नदी,ऐसा कहते लोग हैं।
स्नान दान जप तप करें,उत्तम जीवन भोग है।।
प्रमुख सहायक रापती,गोरखपुर तक बह चली।
संगम गंडक से हुआ ,छपरा में गंगा मिली।।
*चंबल नदी*
बारहमासी शैलजा,उद्गम जानापाव है।
चम्बल नदिया बह चली,यमुना इसका ठाव है।।
कोटा राजस्थान से,मन्दसौर रतलाम को।
भिंड मुरैना को चली,पाँच नदी के धाम को।।
जलप्रपात चूलिया बना,तीन प्रदेशों से बहे।
गाँधी सागर बाँध है,कामधेनु इसको कहे।।
चम्बल मामा शकुनि का,खेल यहाँ चौसर हुआ।
प्रथम नदी शापित रही,इसे न कोई फिर छुआ।।
नीर स्वच्छ बीहड़ नदी,जनसंख्या कम है यहाँ।
मुक्त प्रदूषण से रही,इतिहास अद्भुत वहाँ।।
*प्रदूषण*
नदी प्रदूषित मत करें,यह जीवन आधार है।
धोते हैं क्यों पाप सब,स्वच्छ नीर अधिकार है।।
माटी को बाँधे जड़ें ,रोके मृदा कटाव को।
स्वच्छ नदी की तलहटी,रोके बाढ़ बहाव को ।।
बाढ़ और सूखा बने ,जीवन में अभिशाप जब।
कहे नदी की धार फिर ,जतन करो मिल आप सब।।
करें समापन लेख का,उत्तम अनुभव ये रहा।
जीवटता संदेश दे,गति को ही जीवन कहा ।।
अनिता सुधीर आख्या
विविध विषयों पर उपयोगी रचनाएँ।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार आ0
Deleteहर नदी के उद्गम स्थान और कहां कहां से होती हुई बहती है , हर नदी की खास विशेषताएं यहां तक कि नदी पर बाँध बनाने की प्रक्रिया और सिंचाई के लिए परियोजना का भी बहुत सुंदर ज़िक्र किया है । कमाल की रचना है ।
ReplyDeleteअनिता जी एक बात पूछना चाहूँगी ---
यमुना से संगम किये,स्वागत काशी घाट में।
मिले मोक्ष का द्वार फिर,भव बंधन की काट में।।
यमुना से संगम तो प्रयागराज में हुआ था न ? काशी में तो गंगा ही है । मुझे ये स्पष्ट नहीं हुआ ।
आपका बहुत बहुत आभार कि आपने रचना को ध्यान से पढ़ा
Deleteप्रयाग में संगम कर वक्र हो कर काशी से पूरब
कलकत्ता गंगा सागर में चली जाती है ।
और अब जहां सागर में गिरती है वो बांग्लादेश में आता है ।
बहुत शुक्रिया । संगम और स्वागत को एक ही साथ समझ लिया था इसी लिए थोड़ा संशय की स्थिति बन गयी । गंगा पटना से आगे निकल कर दो हिस्सों में बंट जाती है जिसका एक हिस्सा बांग्ला देश में जाता है इस नदी का नाम पद्मा है और दूसरा बंगाल की खाड़ी में गिरता है कोलकाता होते हुए । इस हिस्से को हुगली नदी कहा जाता है ।आपने पूरी गंगा यात्रा कराई ।आभार
Deleteजी आभार
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर व जानकारीयुक्त ब्यौरा
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