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अब हृदय की इस कलुषता को मिटाने के लिए।
प्रीति का नव गीत रच दो आज गाने के लिए।।
दौड़ने में वक़्त गुजरा,चाह अब विश्राम की
दो घड़ी का साथ हो सुख चैन पाने के लिए।।
अनिता सुधीर आख्या
गीतिका झूठ को सीढ़ियों पर चढ़ाने लगे। पाठ नित ही नया फिर पढ़ाने लगे।। मानते जो स्वयं को सदा श्रेष्ठ ही पात्र ख़ुद को हॅंसी का बनाने लगे।। मू...
सुन्दर मुक्तक। साधुवाद
ReplyDeleteसादर आभार
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर मुक्तक 💐👌💐
ReplyDeleteवाह शानदार
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