तीन बंदर
गांधी जी के
तीन बन्दर
ही तो अब
बन गया है समाज ।
बुरा मत देखो ,
बुरा मत सुनो
बुरा मत कहो,
सिखाते आये गांधी जी ।
आँखे बंद किया अंधा..
अब वो कहाँ देखता बुरा,
घटना का वीडियो बनाता
एक कोने मे खड़ा ।
कान बंद किये बहरा...
सच वो बुरा नहीं सुनता,
किसी की चीत्कारों का
कोई असर नहीँ पड़ता ।
मुँह बंद किये गूँगा
अन्याय सहता
और सहते देख
बुराई के खिलाफ वो
आवाज बुलन्द नही करता ।
गांधी होते ,
देख द्रवित होते
अपने देश का हाल
सीख उनकी ,
ढाल ली
सबने स्वयं अनुसार ।
गांधी के चश्मे से
गांधी का भारत देखो,
बुराई को दूर कर
भारत को स्वच्छ करो ।
गांधी जी के
तीन बन्दर
ही तो अब
बन गया है समाज ।
बुरा मत देखो ,
बुरा मत सुनो
बुरा मत कहो,
सिखाते आये गांधी जी ।
आँखे बंद किया अंधा..
अब वो कहाँ देखता बुरा,
घटना का वीडियो बनाता
एक कोने मे खड़ा ।
कान बंद किये बहरा...
सच वो बुरा नहीं सुनता,
किसी की चीत्कारों का
कोई असर नहीँ पड़ता ।
मुँह बंद किये गूँगा
अन्याय सहता
और सहते देख
बुराई के खिलाफ वो
आवाज बुलन्द नही करता ।
गांधी होते ,
देख द्रवित होते
अपने देश का हाल
सीख उनकी ,
ढाल ली
सबने स्वयं अनुसार ।
गांधी के चश्मे से
गांधी का भारत देखो,
बुराई को दूर कर
भारत को स्वच्छ करो ।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 2 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी सादर आभार
ReplyDeleteसटीक.
ReplyDeleteगांधी होते ,
देख द्रवित होते
अपने देश का हाल
सीख उनकी ,
ढाल ली
सबने स्वयं अनुसार ।
विडंबना ? व्यंग्य ?
अच्छा लिखा आपने. विचार स्पष्ट है. अभिव्यक्ति सरल है.
जी सादर अभिवादन
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