Thursday, October 10, 2019

अशांत मन ,असहनीय वेदना लिये
यायावर सा भटकता रहा ,
संदेशों में कहे गूढ़ अर्थ को
समझने की कोशिशें करता रहा ।
प्रतिवर्ष  दम्भी रावण का दहन,
रावण का समाज में प्रतिनिधित्व
राम कौन ,जो मुझको मारे !ये प्रश्न पूछ
दस शीश रख अट्ठहास करना ,
समाज रावण और भेड़ियों से भरा
ये संदेश विचलित करते रहे ।
एक ज्वलंत प्रश्न कौंधा
क्या लिखने वालों ने अनुसरण किया!
या संदेश अग्रसारित कर
कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली ।
.....दो पुतलों को जलते देखा  जब
भीड़ के चेहरे का उत्साह,
वीडियो बनाते इन पलों को कैद करते लोग
मेला घूमते लोगों को देख
मन शांत हो नाच उठा ।
ये भीड़ प्रतिदिन
गरीबी ,बेरोजगारी ,अशिक्षा
अत्याचार और न जाने कितने
ही रावण से युद्व करती है
जीवन की भागदौड़ में
तिल तिल कर मरती है ।
त्यौहार संस्कृति है हमारी
त्यौहार से मिलती खुशियां सारी
प्रत्येक वर्ष रावण का दहन
देख अपने दुख ,कष्ट भूल जाते हैं
रावण कुम्भकरण प्रतिवर्ष जल कर
अपनी संस्कृति से जोड़े रहते हैं
और राम बनने के प्रयास जारी ....

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 10 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जी सादर अभिवादन

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