Sunday, October 20, 2019


विदाई
***
सूने पार्क में
कोने के चबूतरे पर बैठी
यादों के बियाबान जंगल में
विचरण करती हुई..
तभी पीले पत्तों का शाख से विदा हो कर
स्पर्श कर जाना ,
निःशब्द, स्तब्ध कर गया मुझे ।
अंकुरण नई कोपलों का ,
हरीतिमा लिए पत्तियों में ऊर्जा का भंडार ,
जीवन भर का अथक प्रयास,
और अब  इनकी विदाई की बेला।
कितने ही दृश्य कौंध गये....
माँ की  नन्हीं गुड़िया की
घर से छात्रावास तक की विदाई
अपने जड़ों से दूर जाने की विदाई
एक आँगन से दूसरे आँगन में रोपने की विदाई
पत्नी ,बहू माँ रूप में जीवन का तप..
समय  के चक्र में वही क्रम ,वही विदाई
एक एक कर सब विदा लेते हुए....
वही नम आँखे ....
जीवन के  लंबे सफर में
उम्र के इस ढलान पर
काश मैं भी इन पत्तों सी विदाई ले लेती...
साँसों की डोर में..
निरर्थक  बंधी हुई ..
अंतिम विदाई ले पाती..
तभी एक मैले कुचैले कपडे में
एक अबोध बालिका का रुदन
विचलित कर गया ...
अभी रोकनी होगी अपनी अनंत 
यात्रा की कामना ..
और  सार्थक करनी होगी
अपनी अंतिम विदाई ...

11 comments:

  1. सूने पार्क ... बियावान जंगल ... विदा ... अंतिम विदाई का स्थगन .. बस अचम्भित करता हुआ ... अच्छा है ...

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  2. जी सादर अभिवादन

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  3. अति सुंदर लेखन बहुत अच्छी रचना लिखी है आपने।

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    Replies
    1. आप की सराहना केलिये हार्दिक आभार

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  4. घर से छात्रावास तक की विदाई
    अपने जड़ों से दूर जाने की विदाई
    एक आँगन से दूसरे आँगन में रोपने की विदाई
    पत्नी ,बहू माँ रूप में जीवन का तप..
    समय के चक्र में वही क्रम ,वही विदाई
    कितनी ही विदाई.... बहुत ही सुन्दर कृति
    वाह!!!

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