Friday, October 25, 2019


अकेला दीपक
***
अकेले दीपक की टिमटिमाती लौ
देख अंधियारा मुस्करा ,ये कह उठा ,
सामर्थ्य कहाँ बची अब तुझमें
और मुझे मिटाने का ख्वाब सजा रहा।
रंग बिरंगी झालरों की रौनक में
तेरा वजूद गौण हो गया है ।
गढ़ता रहा जो कुम्हार ताउम्र तुम्हें
वो अब मौन हो गया है ।
दीपक भी हँस के बोला
मेरी सामर्थ्य का भान नहीं है तुम्हें,
मेरे वजूद की बात करते हो
तेरा वजूद मेरे ही तले है
मैं अकेला सामर्थ्य वान हूँ
तुम्हें कैद करने को ,
तमस मिटा करता हूँ उजास
अकेले दीप से दीप जलते रहेंगे
और तुम यूँ ही कैद में तड़पते रहोगे ।

अनिता सुधीर







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