Wednesday, October 9, 2019

आरे में आरी
वृक्ष की आवाज बनने का प्रयास
दोहावली  के माध्यम से

हमें काटते जा रहे  ,पारा हुआ पचास।
नित्य नई परियोजना, क्यों भोगें हम त्रास।।

धरती बंजर हो रही ,बचा न खग का ठौर।
बढ़ा प्रदूषण रोग दे ,करिये इस पर  गौर ।।

भोजन का निर्माण कर ,हम करते उपकार।
स्वच्छ प्राण वायु दिये  , जो जीवन आधार ।।

देव रुप में पूज्य हम ,धरती का सिंगार ।
है गुण का भंडार ले औषध की भरमार ।।

संतति हमको मान के ,करिये प्यार दुलार ।
उत्तम खाद पानी से ,लें पालन अधिकार ।।

मानव और प्रकृति का ,रिश्ता है अनमोल
आरे में आरी नहीं ,समझें मेरा  मोल।

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