Monday, May 25, 2020

मुक्तक


मुक्तक
मॉपनी
1222 1222 1222 1222
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1)
वंदना
विराजो शारदे माँ तुम,नया आसन बिछाते हैं ।
तुम्हारी ही कृपा से हम,विधा नित सीख पाते हैं।
सजाते भाव के मोती,चढ़ाते शब्द की माला,
तुम्हारी ही कृपा से हम,अनोखे पद रचाते हैं ।
2)
मुहब्बत

लगाते आग जो तुम हो,बुझाना भूल जाते हो ,
जमाने से छिपाते हो ,बताना भूल जाते हो ,
मुहब्बत को इशारे से ,जताया आप ने होता ,
रही फितरत तुम्हारी ये ,मनाना भूल जाते हो ।
3)
मुहब्बत  के  तरानों में ,तरन्नुम साज बनती है,
कभी दिल गुनगुनाता है,गजल अल्फाज बनती है।
तराने आशिकी गाते ,निगाहों से जताना है,
पहेली इश्क़ कब सुलझी,यही आवाज बनती है।।
4)
मित्रता

न हमको सांझ की चिंता,न हमको रात का डर है,
मिले जो तुम मुझे मित्रों, न हमको घात का डर है,
पलों को जी लिया करते,ठहर जाये यहीं जीवन,
रहे बैचैन क्यों अब हम ,मुझे किस बात का डर  है।

अनिता सुधीर आख्या

14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 25 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जी हार्दिक आभार

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  3. सभी मुक्तक शानदार👌👌👌👌

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  4. सभी मुक्तक बहुत ही सुंदर है ।

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  5. शानदार सृजन सखी ,मोहक मुक्तक।

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  6. सुन्दर मुक्तक हिं सभी ... बहर में सजे ...

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  7. बहुत सुंदर सृजन
    बधाई

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