नवगीत
*फिर पढ़ाई भी सिसकती*
पाठशाला मौन है अब
फिर पढ़ाई भी सिसकती
प्रार्थना के भाव चुप हैं
राष्ट्र जन गण गीत तरसे
पंजिका पर हाजिरी की
कब मधुर आवाज बरसे
श्यामपट खाली पड़े हैं
बात खड़ियों को खटकती।।
मुस्कराहट रूठती है
खेल सूने से खड़े हैं
वो जुगत जलपान वाली
आज औंधे मुख पड़े हैं
कुर्सियों पर धूल जमती
प्रेत की छाया भटकती।।
भेलपूरी कौन लेता
खोमचे की है उदासी
छूटते अब मित्र साथी
मस्तियाँ फिर लें उबासी
खूँटियों पर वस्त्र लटके
टीस सी अंतस कसकती।।
अनिता सुधीर आख्या
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-09-2020) को "दास्तान ए लेखनी " (चर्चा अंक-3819) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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Jee आ0 हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर सृजन सखी आज के माहौल पर सुंदर नवगीत।
ReplyDeleteअप्रतिम।
बेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteआदरणीया अनिता सुधीर जी, नमस्ते! बहुत सुंदर नवगीत! उत्कृष्ट अभिव्यक्ति! साधुवाद!
ReplyDeleteमैंने आपका ब्लॉग अपने रीडिंग लिस्ट में डाल दिया है। कृपया मेरे ब्लॉग "marmagyanet.blogspot.com" अवश्य विजिट करें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं।
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सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ
जी हार्दिक आभार
Deleteखाली श्याम पट खड़िया को तरसते हैं ...
ReplyDeleteबहुत कमाल का शब्द संयोजन ... नए शब्दों से रची सुन्दर गीत माला ...
जी हार्दिक आभार
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